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Pearl Farming यानिकी मोती की खेती करके भी भारत में कमाई की जा सकती है इसे उद्यमी अन्य बिज़नेस जैसे मछली पालन इत्यादि के साथ भी शुरू कर सकता है । क्योंकि जिस प्रकार मछली पालन करने के लिए तालाब इत्यादि बनाने की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार Pearl Farming के लिए भी तालाब इत्यादि बनाने की आवश्यकता होती है। यद्यपि इसमें कोई शक नहीं है की इस प्रकार का यह व्यवसाय भारतवर्ष में एक लाभकारी बिज़नेस हो सकता है लेकिन इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए अच्छे खासे निवेश की आवश्यकता हो सकती है । इसलिए ऐसे उद्यमी जो इस व्यवसाय में निवेश करने में सक्षम हैं वे इस बिज़नेस के माध्यम से अपनी कमाई करने के लिए इसे शुरू कर सकते हैं। लेकिन इस तरह के बिज़नेस को चलाने में काफी तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है जो इस बिज़नेस में आने वाली चुनौतियों को पार करने में काम आता है। इसलिए Pearl Farming का बिज़नेस करने के इच्छुक उद्यमी को सर्वप्रथम किसी सरकारी या निजी संस्थान या पहले से मोती की खेती कर रहे उद्यमियों से प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता होती है। आज हम हमारे इस लेख के माध्यम से इस तरह का व्यापार शुरू करने में सहायक जानकारी देने का प्रयत्न करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लेते हैं की मोती की खेती होती क्या है?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

pearl-farming business ki jankari

मोती की खेती क्या है (What Is Pearl Farming in Hindi):  

जहाँ तक मोतियों की बात है मोती अनेकों प्रकार के हो सकते हैं लेकिन इनकी उत्पादन प्रणाली के आधार पर इन्हें मुख्य तौर पर प्राकृतिक एवं कृत्रिम में बाँटा जा सकता है। इसमें प्राकृतिक या नेचुरल मोती से आशय जंगलों में पाए जाने वाले मोतियों से लगाया जाता है। जबकि कृत्रिम यानिकी कल्चर्ड पर्ल की खेती की जाती है इसे फार्म में असली ऑयस्टर के अन्दर उगाया जाता है। इसलिए जब हम Pearl Farming की बात कर रहे होते हैं तो हम स्वत: ही कल्चर्ड पर्ल की बात कर रहे होते हैं। अब सवाल यह उठता है की लोगों के जीवन में इन मोतियों का उपयोग क्या होता है की वे इन्हें खरीदें। यहाँ पर आपको बता देना चाहेंगे की आम तौर पर इनका उपयोग आभूषण आइटम के तौर पर होता है। इसलिए इनकी कीमत इनकी गुणवत्ता के आधार पर अलग अलग हो सकती है, एक आँकड़े के मुताबिक प्रति कैरट मोती की कीमत 1000 रूपये से दो लाख रूपये तक हो सकती है। इसलिए जब किसी उद्यमी द्वारा अपनी कमाई करने के लिए इस तरह का व्यापार किया जाता है तो उसे Pearl Farming Business कहा जाता है। 

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Pearl farming Business लाभकारी क्यों है? 

जैसा की हम उपर्युक्त वाक्य में भी बता चुके हैं की भारत में Pearl Farming Business एक लाभकारी बिज़नेस हो सकता है। लेकिन बस इतना कह देने से उद्यमिता की ओर अग्रसित होने वाले लोगों का संशय दूर नहीं किया जा सकता । इसलिए आगे यह जानना जरुरी हो जाता है की Pearl Farming यानिकी मोतियों की खेती को एक लाभकारी व्यापार क्यों माना जाता है। तो इसका साधारण सा जवाब यह है की मोती की खेती से उत्पादित फाइनल उत्पाद की कीमत उच्च होती है। इसकी प्रति कैरट कीमत हजार से शुरू होकर कुछ लाखों तक पहुँच सकती है हालांकि कौन से मोती की कीमत कितनी होगी यह सब उसके आकार एवं गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इसके अलावा Pearl Farming कृषि से जुड़ा एक ऐसा विशिष्ट व्यवसाय है जिससे उत्पादित उत्पाद हल्का एवं विकारों से मुक्त होता है । अर्थात यदि इसे बहुत देर तक या दिनों तक संचित करके रखा भी जाय तो इसका कुछ नहीं बिगड़ता है । यह व्यवसाय उन लोगों के अनुकूल व्यवसाय है जिन्हें पानी में काम करना अच्छा लगता है। इसलिए ऐसे लोग जिन्हें नाव चलाना, पानी में डाईव करना, मछली पकड़ने जैसे कौशल आते हैं उनके लिए यह बिज़नेस उपयुक्त है। ग्राफ्टिंग प्रक्रिया को छोड़ दें तो इसे जलीय कृषि का एक सरल रूप कहा जा सकता है ।

Pearl Farming Business में ध्यान देने योग्य बातें:  

यदि उद्यमी Pearl Farming से सफलतापूर्वक अपनी कमाई करना चाहता है तो उसे थोड़ा लम्बा समय यहाँ तक दो तीन साल लग सकते हैं । इसलिए इस व्यवसाय को सफल बनाने के लिए उद्यमी को न सिर्फ पैसे एवं मेहनत की जरुरत होती है बल्कि धैर्य की भी आवश्यकता होती है। मोती की खेती में पहली बार फसल को तैयार होने में 2-3 साल का समय लग सकता है और जहाँ तक उद्यमी के लाभ कमाने का सवाल है वह दूसरी, तीसरी बार फसल तैयार होने पर लाभ कमा सकता है। यही कारण है की इस तरह का व्यवसाय शुरू करने के लिए उद्यमी को काफी निवेश, मेहनत एवं धैर्य की आवश्यकता होती है । उद्यमी को इस बात का भी बेहद ध्यान रखना होगा की Pearl Farming व्यवसाय को सफल बनाने में उच्च गुणवत्तायुक्त मोतियों का विशेष महत्व होता है और माना यह जाता है की एक फसल में केवल 5-10% मोती ही ऐसे होते हैं जो उच्च गुणवत्ता के होते हैं । इसलिए उद्यमी को उच्च गुणवत्तायुक्त मोतियों की रखरखाव एवं देखभाल की अधिक आवश्यकता होती है । देखा जाय तो Pearl Farming करने वाले उद्यमी के पास पर्ल ऑयस्टर का विश्वसनीय स्रोत होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उद्यमी को फार्म स्थापित करने के लिए उपयुक्त साईट का चुनाव करना होगा और फार्म को संचालित रखने के लिए उसे पर्याप्त धनराशि की भी व्यवस्था करनी होगी । उद्यमी ग्राफ्टिंग टेकनेशियन से तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर सकता है या किसी सरकारी या निजी संस्थान से Pearl Farming पर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है ।  

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Pearl farming के लिए बुनियादी आवश्यकताएं: 

भारत में ताजे पानी के माध्यम से Pearl Farming करने के लिए बहुत सारी बुनियादी आवश्यकताएं हो सकती हैं । लेकिन इनमें से कुछ प्रमुख बुनियादी आवश्यकताओं की लिस्ट निम्नवत है । लेकिन इस व्यवसाय को शुरू करने में आने वाली लागत को ध्यान में रखते हुए इन बुनियादी आवश्यकताओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है ।

स्थिर लागत (Fixed Cost):

स्थिर लागत के अंतर्गत वे सभी आवश्यकताएं आती हैं जिनमें केवल एक बार निवेश करने की आवश्यकता होती है।

  • उद्यमी को एक ऐसे छप्पर की आवश्यकता हो सकती है जिसमें सर्जिकल गतिविधियों को अंजाम दिया जा सके।
  • कम से कम एक तालाब की आवश्यकता हो सकती है, जिसमें Pearl Farming की जा सके । हालांकि इस बिज़नेस के लिए बेहतर यही होता है की तालाब उद्यमी का अपना हो, लेकिन यदि उद्यमी के पास यह नहीं है तो वह इसे लीज पर भी ले सकता है।
  • कल्चर यूनिट की स्थापना की आवश्यकता होती है ।
  • उद्यमी को एक सर्जिकल सेट की भी आवश्यकता होती है ताकि वह सर्जिकल गतिविधियों को अंजाम दे सके। उद्यमी इस प्रकार के सर्जिकल सेट को राज्य के फिशरी डिपार्टमेंट या पर्ल ट्रेनिंग सेण्टर से आसानी से खरीद सकता है।
  • सर्जिकल रूम में मेज एवं कुर्सियों इत्यादि की आवश्यकता हो सकती है ताकि कौशल प्राप्त कर्मचारी वहां पर सर्जिकल गतिविधि को अंजाम दे सकें ।   

अस्थिर लागत (Variable Costs): 

अस्थिर लागत से आशय उस लागत से है जिसमें परिवर्तन होते रहते हैं । Pearl Farming नामक व्यवसाय में परिवर्तनशील लागत की लिस्ट निम्नवत है।

  • उद्यमी को उच्च गुणवत्तायुक्त Pearl Mussels खरीदने की आवश्यकता हो सकती है इसलिए उद्यमी को किसी विश्वसनीय स्रोतों से ही इसकी खरीदारी करनी चाहिए। इसके अलावा उद्यमी चाहे तो इसे ताजे पानी के स्रोत जैसे नदी, झीलों इत्यादि से भी प्राप्त कर सकता है। उद्यमी को मछली पालन कर रहे किसानों से बात करनी चाहिए क्योंकि उनके तालाब भी इनके अच्छे स्रोत हो सकते हैं।
  • उद्यमी को बाजार से Pearl Nucleus खरीदने की भी आवश्यकता होती है जिनकी आवश्यकता ग्राफ्टिंग प्रक्रिया के लिए होती है।
  • उद्यमी को अपने Pearl Farming business के लिए इस क्षेत्र में कौशल रखने वाले कर्मचारियों की आवश्यकता हो सकती है। क्योंकि ग्राफ्टिंग प्रक्रिया में सिर्फ स्किल्ड वर्कर ही चल पाएंगे।
  • यदि उद्यमी नए तालाब में मोती की खेती कर रहा हो तो उसे खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी हो सकती है।

मोती की खेती का व्यापार कैसे शुरू करें (How to Start Pearl Farming Business in India in Hindi):

मोतियों की खेती यानिकी Pearl Farming शुरू करने के लिए उद्यमी को अनेकों कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए आगे इस लेख में हम इस व्यापार को शुरू करने में सहायक कदमों के बारे में वार्तालाप करेंगे।

1. सर्वप्रथम प्रशिक्षण प्राप्त करें:

Pearl Farming business में काफी अधिक तकनिकी ज्ञान की आवश्यकता होती है इसलिए इस बिज़नेस को बिना प्रशिक्षण लिए शुरू नहीं करना चाहिए। उद्यमी को सर्वप्रथम अपने नजदीकी क्षेत्र में ऐसे उद्यमियों का पता करना चाहिए जो पहले से इस तरह का व्यवसाय कर रहे हों, क्योंकि आम तौर पर वही लोग पर्ल फार्मिंग का प्रशिक्षण भी देते हैं। यदि उद्यमी को अपने नजदीकी एरिया में ऐसा कोई उद्यमी नहीं मिलता है तो उसे कृषि विज्ञान केन्द्र या भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् से संपर्क करना चाहिए क्योंकि ये ऐसे सार्वजनिक संस्थान है जो Pearl farming  पर प्रशिक्षण आयोजित कराते हैं। बिना तकनिकी ज्ञान एवं प्रशिक्षण के इस व्यापार को बिलकुल शुरू न करें अन्यथा आपको कमाई के स्थान पर हानि हो सकती है।  

2. मोतियों की खेती के लिए जगह का चुनाव:

Pearl Farming के लिए जगह का चुनाव करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें की उस लोकेशन पर पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, इसके अलावा लोकेशन स्थायी होनी चाहिए अर्थात एक बार फार्म का निर्माण होने पर उसे बार बार स्थान्तरित नहीं किया जा सकता। इसके अलावा वह जगह Pearl Farming के लिए उपयुक्त होनी चाहिए जगह ऐसी होनी चाहिए ताकि फार्म चोरी, डकैती से सुरक्षित रह सके।  

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3. फार्म स्थापित करें: 

अब उद्यमी को चयनित की गई जगह पर फार्म स्थापित करना होगा, फार्म स्थापित करते वक्त उद्यमी को सर्जरी इत्यादि के लिए छप्पर बनाने की आवश्यकता हो सकती है। और तालाब इत्यादि का निर्माण करने की भी आवश्यकता हो सकती है। तालाब एवं छप्पर का निर्माण करने के अलावा Pearl Farming Business शुरू कर रहे उद्यमी को Culture Unit स्थापित करने की आवश्यकता होती है।   

4. mussel या पर्ल ऑयस्टर का संग्रह:What is Neet Exam in Hindi & How to Import

अब उद्यमी का अगला कदम स्वस्थ mussel या पर्ल ऑयस्टर ढूँढने का होना चाहिए उद्यमी चाहे तो इन्हें मौजूदा फार्म मालिकों से खरीद भी सकता है और चाहे तो ताजे पानी के स्रोत जैसे नदियों, झीलों, तालाबों इत्यादि से भी एकत्र कर सकता है। इन mussel या ऑयस्टर को मैन्युअली पकड़ा जाता है और फिर इन्हें कंटेनर, बाल्टी या अन्य बर्तनों में पानी के साथ रखा जा सकता है।   

5. पर्ल ऑयस्टर या mussel को प्री कल्चर के लिए तैयार करना:What is Android Root All Steps in Hindi

पर्ल ऑयस्टर या mussel एकत्र कर लेने के बाद इन्हें प्री कल्चर के लिए तैयार किया जाता है इसके लिए इन्हें दो तीन दिनों तक भीड़ में पानी के साथ कैद करके रखा जा सकता है। इसमें एक लीटर पानी में एक museel को रखा जा सकता है। यह प्री कल्चर कंडीशन सर्जरी के दौरान mussel या ऑयस्टर को हैंडल करने में मदद करता है।   

Small business ideas Regular Income कैसे बनाएँ business develop kaise kare6. इम्प्लांटेशन प्रक्रिया करना: 

इम्प्लांटेशन या ग्राफ्टिंग प्रक्रिया Pearl Farming की लोकेशन के आधार पर अलग अलग हो सकती है आम तौर पर इसे तीन विधियों मेंटल कैविटी इम्प्लांटेशन, मेंटल टिश्यू इम्प्लांटेशन, गोंडल इम्प्लांटेशन के माध्यम से अंजाम तक पहुँचाया जाता है।

7. mussel या ऑयस्टर की पोस्ट ऑपरेटिव देखभाल: How to Open poultry farm Business & Step by Step Increase and Success in Hindi

इम्प्लांट या ग्राफ्टिंग प्रक्रिया से गुज़र चुके mussel या ऑयस्टर को पोस्ट ऑपरेटिव देखभाल इकाई में रखा जाता है। ये इकाइयाँ नायलॉन बैग भी हो सकती हैं जिसमे इन्हें लगभग 10-11 दिनों के लिए रखा जा सकता है इन्हें एंटीबायोटिक उपचार के अलावा प्राकृतिक फ़ूड भी सप्लाई किया जाता है। इन इकाइयों को रोज नियमित तौर पर चेक करना जरुरी होता है की कहीं किसी mussel या ऑयस्टर की मृत्यु तो नहीं हो गई है अगर ऐसा हो तो उसे वहां से हटा दिया जाना चाहिए।  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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8. तालाब में रखना: Uber cab kaise book kare

पोस्ट ऑपरेटिव देखभाल के बाद इन mussel या ऑयस्टर को तालाब में स्टॉक किया जाना चाहिए। इन mussel को तालाब में भी नायलॉन बैग में ही रखा जाता है और प्रति बैग में लगभग 2 Mussel रखे जा सकते हैं । और इन्हें बांस के डंडे या pvc पाइप के माध्यम से तालाब में टांग देना चाहिए। एक हेक्टेयर जगह में लगभग 25000 से 30000 mussel कल्चर्ड किये जा सकते हैं। तालाब को जैविक ढंग से फ़र्टिलाइज किया जा सकता है, समय समय पर museel का निरीक्षण करते रहना चाहिए और 12-20 महीनों के बाद बैगों की सफाई करते रहनी चाहिए।    

9. हार्वेस्टिंग प्रक्रिया: 

Pearl Farming में कल्चर पीरियड के अंत में mussel को हार्वेस्ट किया जाना चाहिए और इस प्रक्रिया में पर्ल को mussel, Mantle Tissue या Gonad से बाहर निकाला जाता है।