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Dairy Whitener या मिल्क पाउडर की यदि हम बात करें तो यह गाय के दूध से उत्पादित एक डेयरी उत्पाद है । आम तौर पर देखा जाय तो बाज़ारों में दो प्रकार का मिल्क पाउडर एक स्किम्ड मिल्क पाउडर जिसमें बसा, और घुलनशील विटामिन बेहद कम मात्रा में होता है, लेकिन प्रोटीन और पानी में घुलनशील विटामिन और खनिज इसमें विद्यमान होते हैं। दूसरी तरफ फुल क्रीम मिल्क पाउडर होता है जिसमें 26% बसा होता है जबकि Skimmed Dairy whitener में सिर्फ 1.5% वसा होता है। इसलिए ऐसे लोग जो कैलोरी के प्रति संवेदनशील हैं उन्हें कम बसा वाला Dairy Whitener या मिल्क पाउडर इस्तेमाल में लाना चाहिए। कुछ लोग दही इत्यादि ज़माने के लिए फुल क्रीम मिल्क पाउडर का इस्तेमाल करते हैं।(milk powder Business Plan in Hindi) 

 

 

milk powder Business Plan in Hindi

 

 

मिल्क पाउडर Business Plan in Hindi

वैसे देखा जाय तो वर्तमान में Dairy Whitener का इस्तेमाल सिर्फ घरों तक ही सिमित नहीं रह गया है। बल्कि ऑफिस, होटल, सार्वजनिक स्थलों पर लगी वेंडिंग मशीनों में इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। बहुत सारी कंपनियाँ भारत में भी Dairy Whitener का निर्माण करती हैं, इनमें नेस्ले, ब्रिटानिया, मौल इत्यादि प्रमुख हैं। लेकिन ये सब कंपनियाँ मिल्क पाउडर में वसा और चीनी की मात्रा अलग अलग प्रतिशत में डालते हैं।

  • दूध की यदि हम बात करें तो यह प्रोटीन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, विटामिन ए इत्यादि पोषक तत्वों को प्रदान करता है ।
  • स्किम्ड Milk Powder की यदि हम बात करें तो इसे पाश्च्युरिकृत दूध से वसा और पानी को अलग करके बनाया जाता है।
  • फुल क्रीम मिल्क पाउडर को दूध से केवल पानी को हटाकर बनाया जाता है, वसा इसमें ही निहित होती है।
  • जहाँ तक Dairy Whitener का सवाल है इसे गाय के दूध से पानी को हटाकर जिसमें वाष्पन क्रिया की मदद ली जाती है यानिकी दूध में उपलब्ध तरल को वाष्पन प्रक्रिया के माध्यम से समाप्त कर दिया जाता है। और सूखे हुए दूध से मिल्क पाउडर बनाया जाता है इसमें चीनी भी अलग से मिलानी पड़ती है।   

 

 

Dairy Whitener बनाना क्यों जरुरी है

जैसा की हम सब जानते हैं की दूध जल्दी खराब होने वाले खाद्य वस्तुओं में से एक है, इसलिए जब इसे Dairy Whitener या मिल्क पाउडर में परिवर्तित कर देते हैं, तो इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। यानिकी मिल्क पाउडर को लम्बे समय तक उपयोग में लाया जा सकता है। और तो और मिल्क पाउडर को किसी खास तापमान पर संरक्षित करने की आवश्यकता भी नहीं होती सामान्य तापमान में ही इसे 1 वर्ष तक उपयोग में लाया जा सकता है।

डेयरी आधारित Dairy Whitener या मिल्क पाउडर का इस्तेमाल कई तरह के मूल्य वर्धित खाद्य पदार्थों को तैयार करने में भी किया जाता है इनमें बेकरी, कन्फेक्शनरी के उत्पाद प्रमुख हैं । हालांकि यह भी सच है की ताजे दूध के मुकाबले पाउडर वाले दूध को कम गुणवत्ता और कम मूल्य का माना जाता है । लेकिन दूसरा सच यह भी है की ताजा दूध जल्दी ख़राब होता है। और मनुष्य को दूध की आवश्यकता हमेशा होती है इसलिए Milk Powder भी हमेशा डिमांड में रहता है।

Dairy Whitener के उपयोग   

मिल्क पाउडर के कुछ प्रमुख उपयोग इस प्रकार से हैं।

  • आम तौर पर लोगों को यही लगता है की Dairy Whitener का इस्तेमाल केवल चाय और कॉफ़ी बनाने में किया जाता होगा, लेकिन चूँकि इसमें वसा की मात्रा भी होती है इसलिए इसका इस्तेमाल केक, चॉकलेट एवं अन्य बेकरी उत्पादों को बनाने में भी किया जाता है।
  • कंडेंस्ड मिल्क बनाने के लिए आपको तरल दूध की ही आवश्यकता होती है इसे आप Milk Powder या डेरी व्हाइटनर से नहीं बना सकते। इसके अलावा कुछ चॉकलेट भी ऐसी हैं जिन्हें बनाने के लिए ताजे दूध का ही उपयोग उचित होता है।
  • बेकरी में बेकिंग और हीटिंग के दौरान मिल्क पाउडर का इस्तेमाल उत्पादों में बेक के स्वाद को बनाये रखता है और मलाईदार बनाने में भी मददगार है ।
  • उत्पाद की स्थिति में सुधार करने में सहायक होता है और वसा ग्लोब्यूल्स को गाँठ में परिवर्तित होने से भी रोकता है।
  • मुहँ को अच्छा लगता है, कम वसा वाले उत्पादों की बनावट को चिकना बनाता है और उत्पाद को मलाईदार बनाने में मदद करता है।
  • कुछ Dairy Whitener ऐसे होते हैं जो खाद्य पदार्थों में पूरी तरह से घुल जाते हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल सूप, सॉस इत्यादि बनाने में भी किया जाता है।
  • मिल्क पाउडर उत्पाद की बनावट में सुधार करने में सहायक है कम वसा होने के बावजूद वसा जैसी विशेषताएँ भी प्रदान करता है।

 

 

 

भारत में मिल्क पाउडर बनाने का बिजनेस लाभकारी क्यों है?

दुग्ध उत्पादन में भारत का पहला स्थान है और इतने बड़े देश में लगभग 70 मिलियन से ज्यादा जनसँख्या दुग्ध उत्पादन के काम में लगी हुई है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में दुसरे सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश अमेरिका से लगभग दोगुना दूध का उत्पादन होता है। और भारत में सन 1998 से लगातार दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हो रही है। और भारत की अधिकतर ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि कार्यों पर टिकी हुई है और पशुपालन भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है।

यहाँ भले ही प्रति पशु दूध उत्पादन अन्य देशों के मुकाबले कम हो लेकिन यहाँ दुनियाँ में गायों की सबसे ज्यादा जनसँख्या है। एक विश्वसनीय आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2018 में भारत ने लगभग 94000 टन डेयरी उत्पादों का निर्यात किया था। जिसकी कीमत 290 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा थी। इनमें सबसे अधिक मक्खन, घी इत्यादि उत्पाद थे जिनकी मात्रा 65% से अधिक थी।

वर्तमान में डेयरी उद्योग का भी वैश्वीकरण हो गया है, यानिकी अब आप अपने डेयरी उत्पादों को सिर्फ घरेलु बाज़ारों में नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी बाज़ार में बेच सकते हैं। दूध से निर्मित मूल्य वर्धित उत्पादों की शेल्फ लाइफ अधिक होने के कारण, इनके खराब या बेकार हो जाने का खतरा भी कम हो जाता है। इसलिए वर्तमान में Dairy Whitener या मिल्क पाउडर बनाने का बिजनेस भी काफी लाभकारी साबित हो सकता है।

क्या क्या लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है

मिल्क पाउडर बनाने की फैक्ट्री खोलने के लिए उद्यमी को निम्नलिखित लाइसेंस और पंजीकरण की आवश्यकता हो सकती है।

  • बिजनेस पंजीकरण प्रोप्राइटरशिप, वन पर्सन कंपनी, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी इत्यादि।
  • कर पंजीकरण यानिकी जीएसटी पंजीकरण।
  • फैक्ट्री रजिस्ट्रेशन।
  • यदि उद्यमी चाहे तो उद्यम रजिस्ट्रेशन।
  • ब्रांड नाम के लिए ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन।
  • FSSAI रजिस्ट्रेशन।    

 

 

 

क्या क्या मशीनरी और उपकरण चाहिए?

Dairy Whitener बनाने का बिजनेस शुरू करने के लिए निम्नलिखित मशीनरी और उपकरणों की आवश्यकता होती है।

  • स्टोरेज टैंक
  • फीड पंप
  • प्री कंडेंसर
  • एटमाइजर के साथ स्प्रे ड्रायर
  • कंडेंसर
  • बेबी बायलर
  • चिल्लिंग प्लांट
  • पैकिंग यूनिट
  • लैब के उपकरण
  • अन्य उपकरण

Milk Powder बनाने में इस्तेमाल में लाये जाने वाले कच्चे माल की लिस्ट इस प्रकार से है।

  • मिल्क
  • सिट्रिक एसिड
  • मैग्नीशियम ऑक्साइड
  • अन्य केमिकल जैसे Nacl, CaCO3 इत्यादि
  • टिन के कंटेनर

 

 

 

मिल्क पाउडर कैसे बनाया जाता है

Dairy Whitener या मिल्क पाउडर बनाने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है।

  • पृथकीकरण और मानकीकरण
  • प्रीहीटिंग या गरम करने की प्रक्रिया
  • वाष्पीकरण
  • स्प्रे ड्राइंग
  • पैकेजिंग और स्टोरेज   

1. पृथकीकरण और मानकीकरण

सबसे पहले कच्चे माल को खरीद लिया जाता है और उसे फैक्ट्री में लाया जाता है। उसके बाद पश्च्युरिकरण की प्रक्रिया शुरू होती है और इसे सेंट्रीफुगल क्रीम सेपरेटर मशीन की मदद लेकर क्रीम और स्किम्ड मिल्क में विभाजित किया जाता है। यानिकी दूध से क्रीम अलग और स्किम्ड मिल्क अलग कर दिया जाता है। हालांकि बाद में क्रीम की कुछ मात्रा स्किम्ड मिल्क में मिलाई जाती है ताकि Dairy Whitener बनाने के लिए दूध में वसा की मात्रा को बनाया रखा जा सके।

2. प्री हीटिंग या गरम करने की प्रक्रिया

Milk powder बनाने के लिए अब स्किम्ड मिल्क को गरम करने की आवश्यकता होती है, इसे प्रमुख रूप से दो तरह से गरम किया जा सकता है। पहला भाप इंजेक्शन के माध्यम से, दूसरा हीट एक्सचेंजर के माध्यम से। आम तौर पर इस दूध को 75 से 120 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर कुछ सेकंड या मिनटों के लिए लगातार गरम किया जा सकता है।

3. वाष्पीकरण की प्रक्रिया   

Dairy Whitener बनाने में अब वाष्पीकरण प्रक्रिया शुरू की जाती है इस प्रक्रिया में सबसे पहले गरम दूध को विभिन्न चरणों में केन्द्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया में दूध को वर्टिकल ट्यूब्स के अन्दर लगी एक फिल्म में 72 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान पर उबाला जाता है। इस प्रक्रिया में दूध से पानी को वाष्प के रूप में उड़ा दिया जाता है और इस वाष्प का इस्तेमाल दूध को गरम करने के लिए भी किया जा सकता है।

4. स्प्रे के माध्यम से ड्राइंग करना

इस प्रक्रिया के तहत Milk Powder बनाने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाता है। और दूध को एटमाइज करके वाष्पीकरणकर्ता से बूँद में परिवर्तित किया जाता है । इस प्रक्रिया को एक बहुत बड़े सुखाने वाले चैम्बर में किया जाता है। यहाँ पर गरम हवा का उचित प्रवाह होने के कारण वह दूध की बूंदों को सुखाने में मदद करता है, लेकिन इसके बाद भी दूध की इन बूंदों को वाष्पीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से ही ठंडा किया जाता है।  

5. पैकेजिंग और भण्डारण  

हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं की Dairy Whitener ताजे दूध की तुलना में कई गुना अधिक समय तक बढ़िया रहता है। लेकिन मिल्क पाउडर की शेल्फ लाइफ को साल तक बढाने के लिए उसे ऑक्सीजन, प्रकाश, नमी और गर्मीं इत्यादि से सुरक्षा देने की आवश्यकता होती है। इसलिए इनकी पैकिंग के लिए विशेष प्रकार के डिब्बे और प्लास्टिक आते हैं। 

 

 

 

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