आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल, 2019 में डेबिट कार्ड से कुल 66 फीसदी लेनदेन एटीएम के जरिए हुई। इसके तहत 80 करोड़ निकासी के साथ 2.84 लाख करोड़ रुपये निकाले गए। इस अवधि में पीओएस मशीनों के जरिए 34 फीसदी लेनदेन हुई।Mobile Se Blog Kaise Banate Hai? मोबाइल से ब्लॉग बनाकर पब्लिश करने के बेहद आसान तरीके!
इससे पहले नकदी के कमी से दिसंबर, 2018 में एटीएम से लेनदेन की संख्या दो-तिहाई से कम थी। उस दौरान एटीएम से 60.3 फीसदी और पीओएस मशीनों से 39.7 लेनदेन हुई थी। वहीं, इस साल मार्च में 68.6 फीसदी लेनदेन एटीएम और 31.4 फीसदी लेनदेन पीओएस मशीनों से हुई थी।
दुकानदारों की मुख्य भूमिका
एटीएम से ज्यादा लगे पीओएस टर्मिनल
अब तक 37.5 लाख पीओएस टर्मिनल बन चुके हैं। हालांकि, इस अवधि में बैंक दो लाख एटीएम मशीनों के बेड़े में सिर्फ 7,000 एटीएम ही नए जोड़ पाए। विशेषज्ञों का कहना है कि एटीएम की बढ़ोतरी में रुकावट का कारण इन्हें लगाने और रखरखाव करने में बहुत ज्यादा खर्च होना है।
ग्रामीण इलाकों में काफी कम एटीएम
वर्ष 2017 में भारत में 5,919 की आबादी पर एक एटीएम था, जबकि चीन, अमेरिका, जर्मनी, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में प्रति दो हजार की आबादी पर एक एटीएम है।
नोटबंदी के बाद कैश की किल्लत ने दुकानदार और खरीदार, दोनों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सबसे ज्यादा असर रोजाना की छोटी-मोटी खरीद-बिक्री पर पड़ा है। छोटे कारोबारी कैसे अपने बिजनेस को बना सकते हैं कैशलेस, बता रहे हैं प्रमोद राय
500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद होने के बाद छोटे दुकानदार भी अब नोट और सिक्कों के बगैर लेन-देन की संभावना तलाशने लगे हैं। नए-नए बैंकिंग सल्यूशंस और ई-वॉलेट के साथ ही पेमेंट के ऐसे जरियों की मांग बढ़ रही है जो छोटी-से-छोटी दुकान पर पारंपरिक गल्ले की जगह ले सकें। आपका भी अगर कोई बिजनेस है और अब तक आप सिर्फ कैश ही लेते थे तो यह सही वक्त है जब आपको कैशलेस ट्रांजैक्शन के बारे में सोचना चाहिए। कैशलेस ट्रांजैक्शन बेहद आसान हैं, बस एक बार शुरुआत करने की देर है। खरीदारों से बिना कैश लिए, मोबाइल, ऐप और छोटी मशीनों के जरिए आप अपना बिजनेस कैसे कर सकते हैं।
1. पॉइंट ऑफ सेल (POS) मशीन
दुकानों पर कैशलेस ट्रांजैक्शन का यह पारंपरिक और सबसे ज्यादा चलन वाला तरीका है। इसके लिए आपको एक करंट बैंक अकाउंट, आई-कार्ड (आधार कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आई-कार्ड आदि), इंटरनेट कनेक्शन (लैंडलाइन, मोबाइल या वाई-फाई) की जरूरत होगी। फिलहाल दो तरह की स्वाइप मशीनें आती हैं, फिक्स्ड कनेक्शन और कॉर्डलेस। पहली तरह की मशीन के लिए स्मार्टफोन होना जरूरी नहीं है और इसका मेंटनेंस चार्ज या बैंक रेंटल भी कम होता है। दोनों तरह के डिवाइस आमतौर पर बैंक ही मुहैया कराते हैं और इसके लिए एक बार इंस्टॉलेशन चार्ज भी लेते हैं। पॉइंट ऑफ सेल की सबसे बड़ी खूबी इसका बैंकिंग गेटवे से जुड़ा होना है, जहां बिनी किसी अमाउंट लिमिट के आपकी ट्रेडिंग इनकम सीधे बैंक अकाउंट में जमा होती जाती है। अब बाजार में कई नई और आधुनिक कॉर्डलेस और ऐप बेस्ड स्वाइप मशीनें भी आ रही हैं। वैसे तो कई कंपनियां इस तरह की मशीनें उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन एमस्वाइप (Mswipe) और ईजीटैप (Eztap) का नेटवर्क काफी बड़ा है।
प्रोसेस: मशीन का मॉडल चुनने के बाद अपने मोबाइल पर मशीन का ऐप (इसे कंपनी का एजेंट आपको लिंक के जरिए भेजेगा) डाउनलोड करके पेयर कर लें। कनेक्ट होते ही सारे ट्रांजैक्शन ऐप पर देखे जा सकते हैं। जब भी कोई पेमेंट होगा, मोबाइल पर नोटिफिकेशन के जरिए डिटेल्स आ जाएगी।
खर्च: 2 से 5 हजार रुपये मशीन खरीदने में। 150 से 300 रुपये हर महीने किराया। बैंक हर ट्रांजैक्शन पर 0.75 से 2 फीसदी तक पैसा लेता है। मिसाल के तौर पर अगर आपने किसी से क्रेडिट कार्ड के जरिए 100 रुपये का पेमेंट लिया तो 2 फीसदी बैंक चार्ज कट कर आपके अकाउंट में 98 रुपये आएंगे।
खूबी
– फंड का बैंक अकाउंट में ट्रांसफर आसान और रेग्युलराइज्ड। रकम की अधिकतम सीमा नहीं।
– लैंडलाइन फोन कनेक्शन, कंप्यूटर या मोबाइल नेटवर्क के इस्तेमाल से ऑपरेट हो सकता है। स्मार्टफोन की तुलना में डिवाइस की कीमत काफी कम।
– गिरने-टूटने या खराब होने के चांस कम।
– कुछ प्रवाइडर बैंक मेंटनेंस और रिप्लेसमेंट की सुविधा देते हैं।
खामी
– मेंटनेंस और ट्रांजैक्शन कॉस्ट ज्यादा।
– एक लिमिट से कम (आमतौर पर 15000 रुपये) मंथली ट्रांजैक्शन पर कुछ बैंक पेनल्टी लगाते हैं।
– बहुत छोटी दुकानों या बेहद कम टर्नओवर वालों के लिए ठीक नहीं।
– पारंपरिक डिवाइस और पुराने मॉडल स्मार्टफोन और ऐप सल्यूशंस को सपोर्ट नहीं करते।
– इलेक्ट्रॉनिक डेटा कैप्चर (ईडीसी) पर आधारित हैं, जो सिर्फ कार्ड पेमेंट ही स्वीकार करता है।
– प्रोसेस स्लो है और नेटवर्क टूटने पर पेमेंट लटकने जैसी बड़ी खामी भी है।
2. मोबाइल पॉइंट ऑफ सेल (M-POS)
डेबिट या क्रेडिट कार्ड से भुगतान का यह तरीका आपके मोबाइल फोन को पीओएस टर्मिनल में बदल देता है। आम स्वाइप मशीन या पीओएस के मुकाबले इसकी कीमत, ट्रांजैक्शन और मेनटेनेंस कॉस्ट काफी कम है और छोटे दुकानदार इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। पायलट प्रोजेक्ट के तहत चेन्नै और मुंबई में दवा की दुकानों और ऑटो चालकों के बीच एम-पीओएस काफी सफल रहा है।
प्रोसेस: जिस बैंक का टर्मिनल लगाना चाहते हैं, उसका एम-पीओएस ऐप अपने मोबाइल में इंस्टॉल करना होगा और बैंक से मिले एक छोटे डिवाइस (माचिस की डिब्बी जितना छोटा) को मोबाइल के ऑडियो जैक में कनेक्ट करना होगा। कस्टमर का कार्ड मोबाइल पर स्वाइप करते ही कार्ड डिटेल्स स्क्रीन पर आएंगी। पिन या पासवर्ड डालते ही पेमेंट हो जाएगा।
खर्च: जहां आम स्वाइप मशीन का महीने भर का खर्चा 700 से 1500 रुपये बैठता है, वहीं एम-पीओएस के लिए बैंकों ने किराये की स्कीमें शुरू की है, जो महीने भर का 200 से 450 रुपये तक थीं। नए नियम के तहत सरकार ने तय किया है कि इसके लिए 100 रुपये से ज्यादा नहीं लिया जा सकता।
खूबी
– डिवाइस टर्मिनल का आकार बेहद छोटा। बैंकिंग फंड ट्रांसफर आसान।
– मोबाइल से सीधे कनेक्ट होने से सभी ऐप्स, क्लाउड स्टोरेज और अकाउंटिंग सल्यूशंस को सपोर्ट।
– आम डिवाइस टर्मिनल्स के मुकाबले मेंटनेंस कॉस्ट 60 पर्सेंट तक कम।
– पोर्टेबल है। चलते-फिरते यूज किया जा सकता है।
– ऑटो चालक, स्ट्रीट वेंडर भी यूज कर सकते हैं। रिटेलर होलसेल मार्केट में ले जाकर लेन-देन कर सकते हैं।
खामी
– मोबाइल कनेक्टिविटी के बाद भी अलग से डिवाइस मेनटेन करना झंझट।
– स्मार्ट फोन और डिजिटल वॉलेट सल्यूशंस से कड़ी चुनौती मिल सकती है।
– मर्चेंट बैंकर अपग्रेडेशन के लिए आगे ज्यादा चार्ज कर सकता है।
– मूविंग स्टेज में इंटरनेट कनेक्टिविटी टूटने से पेमेंट में देरी या फेल होने की आशंका।
3. क्विक रिस्पॉन्स कोड (QR Code)
उन दूरदराज के इलाकों में जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है या सिग्नल वीक रहता है, दुकानदारों के लिए कैशलेस पेमेंट का सबसे मुफीद जरिया क्यूआर कोड हो सकता है। बारकोडेड इमेज आधारित यह तकनीक इस मायने में अलग है कि यहां ट्रांजैक्शन दुकानदार के मोबाइल से न होकर, कस्टमर के मोबाइल से होता है। यह बैंकिंग गेटवे (कार्ड पमेंट) और मोबाइल वॉलेट, दोनों तरह के भुगतान को सपोर्ट करता है। पेमेंट टेक्नॉलजी फर्मों ने देश के सभी बैंकों से क्यूआर कोड को लेकर टाइअप किया है और ज्यादातर बैंकों ने अपने क्यूआर कोड ऐप लॉन्च भी कर दिए हैं। पेमेंट सिक्यॉरिटी के लिहाज से यह सबसे सशक्त और सस्ता जरिया माना जा रहा है।
प्रोसेस: दुकानदार अपने अकाउंट वाले बैंक का क्यू-आर ऐप डाउनलोड करेगा। उसकी मदद से एक बारकोड इमेज जेनरेट करेगा, जिसमें उसकी बैंकिंग डिटेल्स होगी। वह इस इमेज का प्रिंटआउट अपनी दुकान पर लगा देगा। ग्राहक अपना मोबाइल फोन इस इमेज पर स्वाइप करेगा, जिससे एक खास मर्चेंट नंबर फ्लैश होगा। पेमेंट डिटेल्स भरते ही कस्मटर और ट्रेडर, दोनों के मोबाइल पर ट्रांजैक्शन का एसएमएस चला जाएगा।
खर्च: डिवाइस लगाने या उसकी मेनटेनेंस का कोई खर्च नहीं है। बैंकिंग ट्रांजैक्शन कॉस्ट (क्रेडिट कार्ड पर 2 से 2.5% और डेबिट कार्ड पर 0.75 से 1%) यहां भी लागू होगी, जिससे फिलहाल छूट मिली हुई है। सरकार ने इस मोड में शिफ्ट होने वाले दुकानदारों के लिए आगे भी रियायतों के संकेत दिए हैं।
– बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी के भी ट्रांजैक्शन की सहूलियत लेकिन कस्टमर के मोबाइल में इंटरनेट जरूरी।
– बिना अतिरिक्त डिवाइस के कार्ड पेमेंट और डिजिटल वॉलेट, दोनों को सपोर्ट।
– फौरन जेनरेट होता है और प्रोसेसिंग में समय बर्बाद नहीं होता।
– ग्राहक दुकान के सामने या दीवार पर लगे इमेज-कोड पर मोबाइल स्वैप कर खुद ही रकम ट्रांसफर करता है।
– फाइनैंशल सिक्यॉरिटी पीओएस से ज्यादा, लागत कम। मैन्युअल गड़बड़ से बचाव संभव।
– दुकानदार को नहीं पता होता कि ग्राहक ने अपने फोन में कौन-सा कोड-रीडिंग ऐप लगा रखा है।
– नए-नए वॉलेट्स में तेजी से होने वाले बदलावों के चलते इंटरफेस और यूज संबंधी देरी पैदा हो सकती है।
– डिजिटल वॉलेट सल्यूशंस में क्यूआर कोड के बढ़ते चलन के बाद फ्री वॉलेट्स को ही बढ़ावा मिलेगा।
4. मोबाइल या डिजिटल वॉलेट
बिना बैंकिंग गेटवे का इस्तेमाल किए कैशलेस भुगतान का यह सबसे तेज और किफायती तरीका है। ट्रांजैक्शन के लिए कार्ड डिटेल्स डालने की जरूरत नहीं होती और सीमित बैलेंस के चलते किसी बड़े फ्रॉड का खतरा भी नहीं रहता। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पेटीएम ने अब तक करीब दो करोड़ यूजर्स बना लिए हैं। Freecharge, Mobikwik, Oxigen, Citrus Pay, Novopay, Momoe और PayUMoney जैसे कई डिजिटल वॉलेट्स ने भारतीय बाजार में तेजी से जगह बनाई है, जो रिचार्ज और यूटिलिटी बिल भरने से लेकर खरीदारी तक में भुगतान की सुविधा दे रहे हैं। वैसे ज्यादातर बैंक, ईटेलर्स और सर्विस प्रोवाइडर्स ने अपने-अपने ई-वॉलेट भी लॉन्च कर रखे हैं, जहां कोई भी एक सीमा तक बैलेंस रखकर जब चाहे पेमेंट कर सकता है। ई-वॉलेट्स में अग्रणी पेटीएम ने दो तरह के वॉलेट लॉन्च किए हैं। छोटे स्तर पर पेमेंट लेने के लिए आपको कोई सेलर ऐप डाउनलोड करने की जरूरत नहीं है। कोई भी किसी को भी मनी ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन स्पेशल सेलर ऐप्स के लिए कुछ डिटेल्स भरनी होंगी। ऐप के जरिए मोबाइल नंबर डालकर भी पैसा भेजा जा सकता है।
प्रोसेस: कस्टमर और दुकानदार के मोबाइल में वॉलेट ऐप इंस्टॉल होना चाहिए। इस ऐप में कस्टमर को अपने क्रेडिट या डेबिट कार्ड के जरिए पैसे डालने होंगे। दुकानदार आम पेटीएम वॉलेट डाउनलोड करके भी पेमेंट ले सकता है। इसमें मनी सेंड करते ही ट्रेडर और कस्टमर, दोनों को एसएमएस आता है। अगर आपने क्यू-आर कोड आधारित वॉलेट सब्सक्राइब या इंस्टॉल किया है तो उसका एक प्रिंटआउट दुकान पर लगा दीजिए। कस्टमर अपना फोन स्कैन करेगा और पेमेंट की जाने वाली रकम को ऐप में दी गई जगह पर भरेगा। एक क्लिक करते ही पैसा कस्टमर के ऐप से दुकानदार के ऐप में ट्रांसफर हो जाएगा। इस पैसे को दुकानदार आगे पेमेंट के लिए इस्तेमाल कर सकता है या अकाउंट में भेज सकता है।
खर्च: डिवाइस या इंस्टॉलेशन का खर्च या मेंटनेंस चार्ज नहीं है। cashless economy सिर्फ स्मार्टफोन चाहिए, cashless economy जो 5 हजार रुपये तक में आ जाता है। cashless economy इसके अलावा इंटरनेट कनेक्शन पर करीब 500 रुपये महीना खर्च होंगे।cashless economy आपको अपने मोबाइल में cashless economy वॉलेट ऐप डाउनलोड करना है। cashless economy वैसे, इसके लिए दुकानदार को ट्रांजैक्शन फीस देनी होती है, जो 0.5 से 1.5 पर्सेंट तक है। cashless economy नोटबंदी के बाद ज्यादातर वॉलेट ऑपरेटर्स ने कस्टमर से ट्रेडर को ट्रांजैक्शन पर यह फीस माफ कर रखी है।cashless economy
खूबी
– ट्रांजैक्शन चार्ज को छोड़ दें तो कोई डिवाइस इंस्टॉलेशन या मेंटेनेंस चार्ज नहीं।cashless economy
– कार्ड पेमेंट से होने वाली प्रोसेसिंग देरी से बचाता है।cashless economy
– ऐप बेस्ड होने से दुकानदारों की जरूरतों और सुविधाओं के लिए लिहाज से ऐप आ रहे हैं।cashless economy
– तेजी से हो रहे तकनीकी बदलावों के साथ खुद को अपग्रेड करना आसान।cashless economy
– बिलिंग, अकाउंटिंग, टैक्स बुक की मेंटेनेंस और सॉफ्टवेयर्स पर खर्च घटेगा।cashless economy
– सप्लायर्स और डिस्ट्रिब्यूटर्स के साथ डिजिटल रिलेशन बनाना, ऑर्डर देना, पेमेंट करना आसान होगा।cashless economy
खामी
– सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ग्राहक सीधे बैंकिंग गेटवे यानी अपने खाते से भुगतान नहीं करता।
– वॉलेट में रकम मेनटेन करने की सीमा काफी कम है, जोकि फिलहाल 10 हजार से बढ़ाकर 20 हजार की गई है।
– ग्राहक से भुगतान लेने में ट्रांजैक्शन कॉस्ट नहीं आती, लेकिन वॉलेट से अपने बैंक खाते में (लिमिट 1 लाख) फंड ट्रांसफर पर 1 पर्सेंट चार्ज लगता है। हालांकि जिन लोगों ने पेटीएम के पास अपना KYC करवा लिया है, उन्हें 31 दिसंबर तक बैंक में पैसा वापस भेजने पर कोई चार्ज नहीं देना होगा। बाकी सभी को 1 फीसदी चार्ज देना होगा।
– वॉलेट कंपनियों के नए-नए सल्यूशंस के साथ ही नए टर्म्स एंड कंडिशंस भी आ रहे हैं। मसलन, कुछ कंपनियां मर्चेंट बैलेंस पर शर्तें और सप्लायर चुनने में अपनी पसंद थोप सकती हैं।
– बैंकिंग रेग्युलेशन नहीं होने से यहां फाइनैंशल सेफ्टी चिंता की बात हो सकती है।
– ज्यादतर वॉलेट कंपनियां ईटेलर्स के साथ टाइअप कर रही हैं। ऐसे में वे अपने व्यावसायिक हितों को साधने के लिए वॉलेट का इस्तेमाल करेंगी और ट्रेडर्स पर अपनी स्कीमें थोप सकती हैं।
आनेवाला है बायोमेट्रिक सिस्टम
देश में करोड़ों लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं और ऐप का इस्तेमाल तो दूर, अपना नाम भी नहीं लिख सकते। लेकिन सरकार और कैशलेस सिस्टम की नजर उन पर भी है। यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सीईओ अजय भूषण पांडेय कहते हैं कि जल्द ही आधार कार्ड का इस्तेमाल हर तरह के कैशलेस पेमेंट के लिए हो सकेगा। बायोमेट्रिक पहचान और स्मार्टफोन आधारित सिस्टम से कोई ग्राहक स्क्रीन पर अंगूठा भर लगाकर भुगतान कर सकेगा।
पेमेंट कितना सेफ
बैंकिंग गेटवे या कार्ड से पेमेंट तो पूरी तरह आरबीआई रेग्युलेशन के अधीन है और इसमें मध्यस्थता करने वाली पेमेंट तकनीक फर्मों की जवाबदेही भी होती है। लेकिन डिजिटल वॉलेट से भुगतान में विवादों के लिए अभी देश में कोई विशेष कानून नहीं है। साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि वॉलेट कंपनियां फिलहाल आईटी ऐक्ट के सेक्शन 43-ए से रेग्युलेट होती हैं, जहां एन्फोर्समेंट जैसी कोई चीज नहीं है। वॉलेट पेमेंट यूजर और मोबाइल वॉलेट कंपनी के बीच एक टर्म्स एंड कंडिशंस अग्रीमेंट भर है, जिसे कानूनी संरक्षण देने की जरूरत है। ऐसी शिकायतें भी आ रही हैं कि वॉलेट कंपनियां सामान लौटाने या ऑर्डर कैंसल करने के मामले में वह रकम एक खास कैटिगरी में रख लेती हैं, जिसे किसी ईटेलर या प्रॉडक्ट पर खर्च करवाती हैं। कुछ कंपनियां ऐसे में चार्ज भी काट रही हैं। लेकिन ऐसे मामले ऑनलाइन शॉपिंग में ही आ रहे हैं, न कि दुकान पर जाकर शॉपिंग करने पर।
मनमानी नहीं चलेगी
ई-वॉलेट कंपनियों को भी आरबीआई से लाइसेंस लेना पड़ता है। आरबीआई ने वॉलेट में बैलेंस की लिमिट तय कर धोखाधड़ी के स्तर को सीमित कर दिया है। ई-वॉलेट में बिना केवाईसी (KYC) के 10,000 रुपये से ज्यादा नहीं रखे जा सकते। हालांकि नोटबंदी के बाद अस्थायी तौर पर 30 दिसंबर तक के लिए इसे बढ़ाकर 20,000 रुपये किया गया है। जानकार कहते हैं कि वॉलेट से भुगतान में किसी विवाद की शिकायत आरबीआई ऑम्बड्समैन से की जा सकती है। दुकानदार को नुकसान की आशंका काफी कम है, क्योंकि वह सामान सौंपने से पहले सुनिश्चित कर सकता है कि फंड उसके अकाउंट में ट्रांसफर हो गया। एक बड़ा भरोसा यह भी है कि डिजिटल पेमेंट में कस्टमर या मर्चेंट को कभी भी ट्रेस किया जा सकता है। यहां किसी का पैसा लेकर गायब हो जाने या लूट जैसी आशंका काफी कम है। कुछ कंपनियों ने हाल में वॉलेट में कार्ड से पेमेंट की पहल भी की थी, लेकिन आरबीआई ने उस पर रोक लगाते हुए बैंकिंग लाइसेंस लेने की सलाह दी है।
धोखाधड़ी से कैसे बचें
– पीओएस टर्मिनल पर ग्राहक का हस्तक्षेप नहीं होता और बैंकिंग ट्रांजैक्शन में कोई भूल-चूक होने पर कस्टमर केयर की मदद से उसे रिवर्ट कराया जा सकता है। cashless meaning in hindi बैंकिंग गेटवे पर पेमेंट टेक्नॉलजी फर्मों (मास्टर कार्ड, वीजा) की मध्यस्थता के चलते किसी बड़ी धोखाधड़ी के चांस कम हैं। cashless meaning in hindicashless meaning in hindi
– डिजिटल वॉलेट से ट्रांजैक्शन करने वालों को चाहिए कि बिना लॉगआउट किए अपना फोन या वॉलेट किसी को न दें, वरना वह आपके वॉलेट से अपने वॉलेट में फंड ट्रांसफर कर सकता है। लेकिन ऐसे ट्रांसफर को आसानी से ट्रेस किया जा सकता है और संबंधित वॉलेट मालिक से वसूली की जा सकती है। इसके लिए आईटी ऐक्ट की धारा 43-ए के तहत डेटा चोरी का मामला भी बनता है।
– अपना वॉलेट पासवर्ड किसी को नहीं बताएं। खास बात यह कि फंड ट्रांसफर के बाद एसएमएस रिसीव करने के बाद ही सामान किसी को दें।
– कस्टमर एंड से फंड ट्रांसफर होने, लेकिन आपके वॉलेट में नहीं पहुंचने पर cashless machine कस्टमर की जवाबदेही बनती है कि वह वॉलेट के कस्टमर केयर से इसकी शिकायत करे।
– वॉलेट यूज करते समय पब्लिक वाई-फाई cashless machine के बजाय मोबाइल नेटवर्क या ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करें, इससे डेटा या पासवर्ड हैक होने का खतरा कम हो जाता है।
नए ट्रेंड
– डिजिटल वॉलेट कंपनी Paytm ने एक टोलफ्री नंबर (180018001234) की घोषणा की है, जो बिना इंटरनेट कनेक्शन के cashless machine भी लेन-देन की सहूलियत देता है। इसके लिए यूजर्स को अपना मोबाइल नंबर रजिस्टर करना होगा और अपना एटीएम पिन सेट करना होगा।
– ई-कॉमर्स कंपनी ShopClues ने अपने सप्लायर्स के लिए Reach नाम से एक कैशलेस सल्यूशन लॉन्च किया है, cashless machine जो बिना किसी ट्रांजैक्शन कॉस्ट के सीधे बैंक अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा देता है। इसका इस्तेमाल वे दुकानदार भी कर सकते हैं, cashless machine जो शॉपक्लूज से नहीं जुड़े हैं। cashless machine उन्हें 99 रुपये महीने का किराया देना होगा।
कहां कितना चार्ज
– पीओएस टर्मिनल पर बैंक प्रति ट्रांजैक्शन 1.5 पर्सेंट से 2.8 पर्सेंट (क्रेडिट कार्ड) कमिशन चार्ज करते हैं। एक ही बैंक अलग-अलग तरह के कार्ड (अमेरिकन एक्सप्रेस, मास्टरकार्ड, वीजा) पर अलग-अलग दरें चार्ज कर सकता है। machine meaning in hindi यह उनके और पेमेंट टेक्नॉलजी फर्मों के टाइअप पर निर्भर करता है।
– यह चार्ज ट्रेडर के अकाउंट से कटता है।machine meaning in hindi अगर किसी ग्राहक ने 10,000 रुपये का कोई सामान लिया तो उसका बिल तो 10 हजार ही आएगा, लेकिन बैंक ट्रेडर के अकाउंट में 200 रुपये (माना कि कमिशन 2 पर्सेंट है) machine meaning in hindi कमिशन काटकर 9800 रुपये ही डालेगा। आमतौर पर ट्रेडर इस लागत को ग्राहक के ऊपर डालने के लिए प्राइस में पहले ही जोड़ देते हैं machine meaning in hindi या ग्राहक से कहकर वसूल करते हैं। machine meaning in hindi
– कमिशन चार्ज पर 15 पर्सेट सर्विस टैक्स भी लगता है machine meaning in hindi यानी ऊपर वाले मामले में यह 10,000 रुपये पर न लगकर 200 रुपये पर लगेगा और ट्रेडर को देना होगा।
– डेबिट कार्ड के मुकाबले क्रेडिट कार्ड पर कमिशन थोड़ा ज्यादा होता है। डेबिट कार्ड पर रकम सीधे कस्टमर के cashless meaning in hindi खाते से ट्रेडर के खाते में चली जाती है, machine meaning in hindi जबकि क्रेडिट के मामले में बैंक तो ट्रेडर को पेमेंट कर देता है, machine meaning in hindi लेकिन उसे ग्राहक से रकम मिलने में देरी हो सकती है। cashless meaning in hindi इसके लिए बैंक ग्राहकों को 45 दिन तक की छूट देते हैं machine meaning in hindi और उसके बाद भारी ब्याज (जो 48 पर्सेंट तक हो सकती है) वसूलते हैं।
– कॉर्डलेस डिवाइस के लिए रेंटल 700 से 1500 रुपये और फिक्स्ड लाइन मशीनों के लिए 300 से 400 रुपये महीना तक हैं। machine meaning in hindi यह बैंकों और ट्रेडर के टर्नओवर पर निर्भर करता है। बहुत कम मंथली ट्रांजैक्शन करने वालों से ज्यादा और अधिक ट्रांजैक्शन करने वालों से कम चार्ज लिए जाते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल cashless machine इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने नीति आयोग और डीआईपीपी की देखरेख में देश के करीब 20 लाख ट्रेडर्स को कैशलेस पेमेंट के लिए ट्रेनिंग दी है।cashless machine इसके लिए लेस-कैश (Less-Cash) कैंपेन भी चलाया जा रहा है cashless machine और cashless meaning in hindi कई बैंकों व टेक्नॉलजी फर्मों के साथ समझौते भी हुए हैं। machine meaning in hindi वैसे, जीएसटी के तहत आने के cashless machine लिए भी ट्रेडर्स को डिजिटल मोड में शिफ्ट होना ही पड़ेगा। cashless meaning in hindi -प्रवीण खंडेलवाल, cashless meaning in hindi जनरल सेक्रेटरी, कन्फिड्रेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स
छोटे ट्रेडर्स के लिए कैशलेस पेमेंट के लिए एम-पीओएस और क्यू-आर कोड ज्यादा cashless machine किफायती और cashless meaning in hindi असरदार जरिया दिख रहे हैं। cashless meaning in hindi machine meaning in hindi डिमॉनेटाइजेशन के बाद असंगठित रिटेल क्षेत्र में इनकी डिमांड बढ़ी है। जैसे-जैसे लोग इनसे जुड़ेंगे, सुरक्षा चिंताएं cashless meaning in hindi भी दूर होती जाएंगी। cashless machine -रविंदर एस. अरोड़ा, cashless meaning in hindi वाइस प्रेजिडेंट (ग्लोबल पॉलिसी अफेयर्स) मास्टर कार्डcashless machine