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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावादी काल के एक प्रसिद्ध कवि कहे जाते हैं। उन्हें महाकवि निराला के नाम से भी बुलाया जाता है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई काव्य का जनक भी कहा जाता है। उनकी प्रसिद्ध कविता ‘वर दे वीणावादनी वर दे’ आपने जरूर सूना होगा। यह कविता आज भी सरस्वती बन्दना के रूप में अत्यंत ही लोकप्रिय है। उनके इस लोकप्रिय रचना के कारण लोग उन्हें सरस्वती पुत्र तथा महाकवि जैसे नाम से भी सम्बोधित करते थे। Suryakant Tripathi Nirala का इतिहास Biography जीवन परिचय in Hindi

 

Suryakant Tripathi Nirala का इतिहास Biography जीवन परिचय in Hindi

 

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का व्यक्तित्व एवं कृतित्व लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। जीवन भर वे आर्थिक कठिनाई और अस्वस्थता से जूझते रहे लेकिन हमेशा साहित्य और माँ सरस्वती की साधना दोनों में लीन रहे। उन्होंने अपना सारा जीवन हिन्दी साहित्य के सृजन में लगा दिया। वे प्रकृति प्रेमी कवि थे इस बात का पता उनकी रचनाएं ‘जूही की कली’, ‘संध्या सुंदरी’ से साफ जाहीर होता है। उनकी रचनाओं को पढ़ने से निराला जी का प्रकृति से बेहद लगाव प्रतीत होता है। उनके कविता के कुछ अंश –

 

“सखि, वसंत आया। भरा हर्ष वन के मन। नवोत्कर्ष छाया। सखि, वसंत आया”

कहते हैं की उनके द्वारा रचित मुक्तक छंद को कुछ लोगों ने शुरू में रबड़ और केंचुआ जैसे नाम देकर उपहास उड़ाया था। लेकिन कलांतर में उनकी पहचान एक प्रसिद्ध छायावादी कवि के रूप में हुई।

आइये सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय हिंदी में विस्तारपूर्वक जानते हैं : –

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय इन हिंदी – Suryakant Tripathi Nirala ka jivan parichay

पूरा नाम – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Suryakant Tripathi Nirala )
जन्म वर्ष – 21 फरवरी 1896 ईस्वी (वसंत पंचमी)
जन्म स्थान – -मेदनीपुर बंगाल
माता का नाम – माता का नाम रुक्मिणी
पिता का नाम – पंडित रामसहाय त्रिपाठी
निधन -15 अक्टूबर 1961 ईस्वी, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश

कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय – Suryakant Tripathi Nirala Biography In Hindi

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म

निराला जी का जन्म बंगाल के वर्तमान मेदनीपुर जिले (तत्कालीन महिषादल रियासत) में 21 फरवरी 1897 ईस्वी को वसंत पंचमी के दिन हुआ था। यद्यपि उनके जन्म बर्ष को लेकर विद्वानों में मतांतर है।

उनके पिता का नाम ‘पंडित रामसहाय त्रिपाठी‘ था जो बंगाल में नौकरी करते थे। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की माता का नाम रुक्मिणी थी।

बचपन में निराला जी के माता-पिता उन्हें ‘सूर्य कुमार’ नाम से बुलाते थे। लेकिन साहित्यिक जगत में प्रवेश करने के बाद उन्होंने अपना नाम परिवर्तित कर ‘सूर्यकांत’ रख लिया था।

उनका परिवार मूलरूप से उत्तरपरदेश के उन्नाव जिले के गढकोला ग्राम के निवासी थे। अपने माता पिता के साथ निराला जी का अपने पैतृक ग्राम भी आना-जाना लगा रहता था।

जब वे छोटे थे तभी उनके माता जी का देहांत हो गया। फलतः उनका लालन-पालन उनके पिता के द्वारा किया गया। उनके पिता ने स्थानीय स्कूल में उनका दाखिला करा दिया।

शिक्षा दीक्षा

वे अपने नाम के अनुरूप ही अत्यंत ही निराले और विनम्र स्वभाव के थे। बचपन से ही उनकी अभिरुचि संगीत और कुश्ती के प्रति था। उनकी आरंभिक शिक्षा बांग्ला, संस्कृत और अंग्रेजी में हुई। उसके बाद स्वाध्याय से उन्होंने विद्यार्जन किया

परिवरिक जीवन

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का विवाह मात्र 14 वर्ष की उम्र में हो गया। निराला जी की पत्नी का नाम मनोहरा देवी थी। उनकी पत्नी मनोहरा एक सुंदर और विदूसी महिला थी।

उनकी पत्नी रामचारित मानस का नियमित पाठ किया करती थी। फलतः उनके अंदर तुलसीदास जी की कृतियों में गहरी रुचि और हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी अनुराग उत्पन्न हो गया।

उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री की भी प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम रमाकांत त्रिपाठी और पुत्री का नाम सरोज थी।

जीवन में नया मोड़ –

कहते हैं की निराला जी ने अपनी पत्नी से ही हिन्दी का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया था। लेकिन दुर्भाग्य से सन 1918 ईस्वी में उनकी पत्नी इंफ्लुएंजा की चपेट में आ गई। फलतः उनकी पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया।

कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया की धीरे-धीरे उनके बच्चे भी काल के गाल में समा गये। वे अंदर से टूट सा गए थे। साथ ही अपनी आजीविका के लिए भी उनके पास साधन का अभाव हो गया।

पत्नी के देहांत के बाद वे बंगाल से अपने ससुराल उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के गढ़ाकोला गाँव में रहने लगे। यहाँ उन्होंने कई वर्ष विताये तथा इस दौरान उन्होंने हिन्दी साहित्य का गहन अध्ययन किया।

वेदान्त मार्ग का अनुसरण

फलतः उन्होंने महिषादल के राजा का पास नौकरी करने लगे। लेकिन नौकरी में उनका दिल तनिक भी नहीं लगा और थोड़े ही समय के बाद नौकरी छोड़ दि। उसके बाद वे रामकृष्ण मिशन से जुड़ कर रामकृष्ण मिशन की पत्रिका ‘समन्वय’ के सम्पादन करने लगे।

रामकृष्ण मिशन से जुड़कर वे स्वामी विवेकानंद के वेदान्त दर्शन से अत्यंत ही प्रभावित हुए। इस प्रकार उन्होंने वेदान्त मार्ग का अनुसरण कर वेदांती बन गये। इस दौरान वे रामकृष्ण मिशन के पत्रिका के सम्पादन के साथ-साथ काव्य रचना में भी रुचि लेने लगे।

‘निराला’ नाम से प्रसिद्धि

कलकता से निकलने वाली एक पत्रिका में निराला जी का एक काव्य रचना ‘जूही की कली’ का प्रकाशन हुआ था। उनके इस रचना के साथ उनका पूरा नाम सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ छपा था।  

उनकी वह रचना लोगों को बहुत पसंद आई। कहते हैं की उसी समय से वे ‘निराला‘ के नाम से मशहूर हो गये। कुछ लोगों का कहना है की निराला जी स्वभावतः ही बहुत निराले थे। इसी कारण वे अपने नाम के साथ ‘निराला’ उपनाम जोड़ लिए थे।

निराला जी के जीवन से जुड़ी एक कहानी से पता चलता है की वे बहुत ही उदार और दयालु व्यक्ति भी थी। एक बार उन्होंने ठंढ से बचने के लिए एक नई शाल खरीदी। कड़ाके के ठंड हवा चल रही थी।

वे अपने शाल को ओढ़कर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक भिखारी नजर आया। वह भिखारी ठंड से कांप रहा था। निराला जी से उनकी स्थिति देखी नहीं गई।

उन्होंने समझा एक शाल की मुझसे ज्यादा इसे जरूरत है। फलतः उन्होंने अपना नया शाल उस भिखारी को दान कर दिया।

उनका व्यक्तित्व अत्यंत ही आकर्षक और ओजपूर्ण था। वे कभी जीवन में हार नहीं माने। भाग्य के लेख को बदलने की कवि की इस अद्भुत जिद के कारण ही आलोचक उन्हें ‘महाप्राण’ भी कहते थे। उनकी लिखित कुछ पंक्तियाँ :-

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अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त.

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय

निराला जी की पहली कविता ‘जूही की कली’ मानी जाती है। कहते हैं की इस काव्य रचना को सन 1916 में साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशन हेतु भेजा गया था। तब उनकी रचना को संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने निम्न श्रेणी की रचना समझकर लौटा दिया था।

लेकिन आगे चलकर निराला जी को छायावाद की श्रेष्ठतम कविताओं में गिना जाने लगा। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने सबसे पहली पत्रिका ‘मतवाला’ का संपादन 1923 में किया था।

उसके बाद निराला साहब कलकता से लखनऊ शिफ्ट हो गये। यहाँ पर वे सुधा पत्रिका के लिए लिखने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात सुमित्रानंदन पंत से भी हुई थी।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला का साहित्य में स्थान

निराला जी की रचनाओं का प्रथम काव्य-संग्रह ‘अनामिका और दूसरा काव्य-संग्र ‘परिमल’ नाम से छपा था। उसके बाद उन्होंने ‘गितिका, तुलसीदास, राम की शक्ति पूजा आदि की रचना की।

निराला जी का अंतिम काव्य-संग्रह ‘सांध्यकाकली’ का प्रकाशन सन 1969 ईस्वी में उनके मरणोपरांत हुआ था। लखनऊ में ही उन्होंने गद्य का भी सृजन प्रारंभ किया तथा कई कहानी, निबंध और उपन्यास की भी रचना की।  

लखनऊ में कुछ वर्ष बिताने के बाद वे प्रयागराज आ गये। प्रयागराज में रहकर उन्होंने बेला, नए पत्ते और कुकुरमुत्ता की रचना की। कहा यह भी जाता है की वे इस दौरन कुछ दिनों तक वे अपने ससुराल गढकोला में भी रहे थे।

जहाँ पर उन्होंने ‘बिल्लेसुर’ और ‘बकरिहा’ और ‘कुल्ली भाट’ जैसी रचनायें का सृजन किया। तत्पश्चात उन्होंने ‘अर्चना,’ ‘आराधना’, और ‘गीत गूंज’ नामक गीतों की रचना की। बर्तमान में उनकी सारी रचनायें ‘निराला रचनावली’ के नाम से संग्रहीत की गई है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं

  • अनामिका (1923), पहला काव्य संग्रह
  • परिमल (1930),
  • गीतिका (1936),
  • द्वितीय अनामिका (1938),
  • तुलसीदास (1938),
  • कुकुरमुत्ता (1942),
  • अणिमा (1943),
  • बेला (1946),
  • नये पत्ते (1946),
  • अर्चना (1950),
  • आराधना (1953),
  • गीतकुंज (1954)
  • संध्याकाकली
  • अपरा

पत्रकारिता

उन्होंने रामकृष्ण मिशन की समन्वय पत्रिका के साथ मतवाला, माधुरी, सुधा आदि पत्रिका का सम्पादन किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की भाषा शैली की सबसे बड़ी विशेषता उनकी रचना में पाये जाने वाला संगितात्मकता और ओज है। उन्होंने कहानी, उपन्यास, काव्य, निबंध सभी जगह अपनी रचना से अमिट छाप छोड़ने में सफल रहे।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता में खड़ी बोली की प्रधानता मिलती हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा एक तरह से खड़ी बोली का मस्तक ऊँचा किया। इस प्रकार हम देखते हैं की ‘निराला जी’ की भाषा शैली अत्यंत ही अनुपम है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु

अस्वस्थता के कारण उनका अंतिम समय कष्टपूर्ण रहा। उनके जीवन का अंतिम समय प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में बीता।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने 15 अक्टूबर 1961 को अपने नश्वर शरीर को त्याग कर इस दुनियाँ को अलविदा कह गए। हिन्दी साहित्य के लिए किए योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा।

 

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पुरस्कार

हिन्दी साहित्य के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी को मरणोपरांत भारत के प्रसिद्ध नागरिक सम्मान “पद्मभूषण“ से अलंकृति किया गया।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के सम्मान में वर्ष 1976 में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं (suryakant tripathi nirala ki kavita)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं प्रकृति प्रेम को दर्शाता है।सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता में सामंतवादी सोच का आक्रोश साफ दिखाई पड़ता है। उनकी पहली कविता जूही की कली (1916) थी। निराला जी ने अपनी काव्य रचना के माध्यम से कविता को छंद से मुक्ति प्रदान की।

यहॉं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता की कुछ आप सभी के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।

स्नेह-निर्झर बह गया है,
स्नेह-निर्झर बह गया है, रेत ज्यों तन रह गया है।

आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है-“अब यहाँ पिक या शिखी।
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी , नहीं जिसका अर्थ-जीवन दह गया है॥

“दिये हैं मैने जगत को फूल-फल, किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल ।
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-ठाट जीवन का वही जो ढह गया है॥

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा ।
बह रही है हृदय पर केवल अमा; मै अलक्षित हूँ; यही कवि कह गया है ।

जुही की कली – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

आयी याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात,
आयी याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात,
आयी याद कान्ता की कमनीय गात,
फिर क्या? पवन उपवन-सर-सरित गहन -गिरि-कानन

जाने कहो कैसे प्रिय-आगमन वह?
नायक ने चूमे कपोल,
डोल उठी वल्लरी की लड़ी जैसे हिंडोल।
इस पर भी जागी नहीं, चूक-क्षमा माँगी नहीं,
निद्रालस बंकिम विशाल नेत्र मूँदे रही,
किंवा मतवाली थी यौवन की मदिरा पिये,

उपसंहार

उन्होंने अपने कविता में नारी को उचित सम्मान प्रदान किया। उनकी कविता ‘बादल राग’ से भी यह बात प्रमाणित होता है। उनके अंदर तुलसीदास और कबीरदास दोनों की रचनाओं का समन्वय देखने को मिलता है।  

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के प्रश्न उत्तर

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म कब और कहां हुआ था?

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वसंत पंचमी के दिन 1896 ईस्वी में बंगाल के वर्तमान मेदनीपुर जिले में हुआ था।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने सबसे पहली पत्रिका का संपादन कब किया था?

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने सबसे पहली पत्रिका ‘समन्वय’ का संपादन 1920 में किया था?

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला किस काल के कवि हैं?

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का नाम हिन्दी काव्य जगत के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में सुमार हैं। वे सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य जगत में छायावाद के प्रमुख कवि के रूप में जाने जाते हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म किस शहर में हुआ ?

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म मेदनीपुर बंगाल में हुआ था।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रसिद्ध कविता कौन सी है?

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रसिद्ध कविता जूही की कली है, जिसकी रचना 1916 में हुआ था।

 

 

 

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