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आज से कई साल पहले तक हम आधुनिक दवाइयों के बारे में कुछ नहीं जानते थे। जितने भी दवाइयां या औषधि का इस्तेमाल हम करते थे वह पेड़ पौधों और वनस्पतियों से प्राप्त होता था। लेकिन, आज के आधुनिक युग में हम जहां टेबलेट और सिरप के रूप में दवाइयों को ग्रहण करते हैं। आज के हमारे इस लेख में हम इसी बारे में चर्चा करने वाले हैं (Medicines कैसे बनती है in Hindi )  – दवाइयां कैसे बनती है? आप भी कभी ना कभी अभी बीमार तो जरूर पडते होंगे। जब भी आप बीमार होते हैं तो डॉक्टर के पास उसके इलाज के लिए जाते हैं। डॉक्टर आपको बीमारी से संबंधित बहुत सारी दवाइयां और कभी-कभी सिरप भी देते हैं। लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि दवाइयां कैसे बनती है? एक समय था जब इंसान मक्खियों की तरह हेजा और मलेरिया जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाता था। हेजा और मलेरिया उस दौरान महामारी का रूप ले लेती थी और कई सारे लोगों की जान साधारण से बीमारी से हो जाता था। सौभाग्य से, हमें विज्ञान को धन्यवाद कहना चाहिए। क्योंकि, विज्ञान की मदद से आज हमारे पास अनगिनत बीमारियों से लड़ने के लिए दवाएं उपलब्ध है। हमने विज्ञान की मदद से ऐसी बीमारियों का इलाज भी खोज निकाला है जिन का इलाज पहले असंभव सा लगता था। हमने अनुसंधान और विकास के कई दशकों में महारत हासिल कर ली है कि हम अभी इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि हम किसी भी बीमारी के जड़ तक पहुंच सकते हैं और उसके संबंधित इलाज के बारे में शोध कर सकते हैं। आज हमारा यह समाज बहुत सी बीमारियों से बचा है। जिसके वजह केवल और केवल विज्ञान है। यह दवा का निर्माण और निष्कर्षण है जो हमें बीमारियों के डर के बिना हमारे जीवन के बारे में दिए जाने के लिए विलासिता प्रदान करता है। आज के हमारे इस लेख में हम इसी बारे में जानकारी लेंगे की How are Medicines Made? – दवाइयां कैसे बनती है?

 

 

 

 

Medicines कैसे बनती है in Hindi

 

 

 

 

How are Medicines Made? – दवाइयां कैसे बनती है?

वर्तमान समय में किसी भी बीमारी के लिए दवाइयां गोलियां और कैप्सूल, सिरप, जैल और क्रीम, इंजेक्शन और इनहेलेबल चीजों के रूप में बनाई जाती है। कुछ दवाइयां तो ऐसी होती है जिनकी कीमत काफी ज्यादा होती है। और ऐसी दवाइयां बनाने में भी काफी मेहनत लगती है।

दवाइयां क्या होती है?

दवाइयां या Medicine ऐसे पदार्थ है जिनका उपयोग बीमारियों के इलाज या रोकथाम और उनके लक्षण को कम करने के लिए किया जाता है। उन्हें प्रयोगशालाओं में रासायनिक रूप से संश्लेषित किया जा सकता है या उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि पौधा और खनिज से प्राप्त किया जा सकता है।

एस्प्रिन नाम की दवा के बारे में तो आपको जरूर पता होगा। इस दवा का इस्तेमाल दर्द निवारक के रूप में किया जाता है। आपने भी इस दवा का इस्तेमाल अपनी जिंदगी में एक ना एक बार जरूर ही किया होगा जब आपको काफी जोरों से सिर दर्द हुआ होगा।

एस्प्रिन दवा रासायनिक रूप से उत्पादित किया जाता है। जबकि पेनिसिलिन जैसे एंटीबायोटिक्स कवक प्रजाति पेनिसिलियम क्राइसोजेनम से निकाले जाते हैं। वहीं वर्तमान समय में बैक्टीरिया से भी एंटीबायोटिक्स निकाले जा रहे हैं। जैसे कि उदाहरण के तौर पर स्ट्रैप्टोमाइसिन जिसे स्ट्रेप्टोमाइसेस नामक बैक्टीरिया से निकाला जाता है।

इन सभी विशेष योगिकों, चाहे संश्लेषित या निकाले गए हो को दवा के सक्रिय दवा घटक के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक दवा में एक आदित्य योगिक होता है जो वंचित उपचारात्मक या निवारक प्रभाव प्राप्त कर सकता है।

जब कोई दवा शरीर में प्रवेश करती है तो दवाइयों के सक्रिय तत्व हमारे शरीर में जैव रासायनिक घटकों के साथ मिल जाते हैं ताकि वह हमारे शरीर में होने वाली बीमारियों को रोक सके।

 

 

 

 

 

 

दवाइयों को कैसे बनाया जाता है?

जैसा कि हमने पहले ही इस बारे में जिक्र किया है कि हमें दवाइयां या तो प्राकृतिक रूप से मिलती है या फिर हम इसे रसायनिक तरीके से किसी योगिक या तत्व से निकालते हैं। इन्हीं के आधार पर हम कह सकते हैं कि हम दवाइयों को 2 तरीके से बनाते हैं।

  1. रसायनिक तरीके से
  2. प्राकृतिक तौर से प्राप्त दवाइयां

रसायनिक तरीके से बनने वाली दवाइयां

किसी भी रासायनिक दवा में रसायन या तो कार्य नहीं किया अकार्बनिक किया एक साथ मिश्रित होते हैं जो कि जटिल रासायनिक प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला के बाद हमें दवाइयां प्राप्त होती है।

यह रासायनिक प्रतिक्रिया है विशाल प्रतिक्रिया बैंकों में होती है और इन्हें या तो गर्म किया जाता है या ठंडा किया जाता है। जिसके बाद इन्हें नियंत्रित तरीके से मिलाया जाता है। प्रतिक्रिया पूरी होने के बाद बचे हुए रसायन को अत्यधिक गर्म करके उबाला जाता है। प्रतिक्रिया के शेष उत्पाद को एक पाउडर या क्रिस्टल पदार्थ बनने तक ठंडा किया जाता है।

यह पाउडर या क्रिस्टल पदार्थ है जिसमें सक्रिय दवा घटक होते हैं जिसे अगले चरण दवा निर्माण के लिए आगे बढ़ाया जाता है। दवा निर्माण में सक्रिय संगठन को पानी और बाइडिंग एजेंटों के साथ एक बड़े मिक्सर में मिलाकर औषधि योगिक बनाया जाता है।

चुने हुए वितरण पद्धति के आधार पर इस मिश्रण को सिखाया जाता है और या तो गोलियों में संकुचित करके टैबलेट या कैप्सूल बनाया जाता है। क्रीम या जल के रूप में संचालित किया जाता है या फिर इसे इंजेक्शन में बोतल बंद करके औषधि के रूप में बाजार में उपलब्ध कराई जाती है।

प्राकृतिक तरीके से दवा निर्माण की प्रक्रिया

इस तरीके का इस्तेमाल हम लोग कई लाखों सालों से करते आ रहे हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि दवा की खोज मुख्य रूप से पेड़ पौधों से ही हुई है। प्राचीन मिस्र वासी अफीम को दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल करते थे।

वहीं भारत जैसे देश में दांत के दर्द एवं मुंह संबंधी बीमारियों के लिए नीम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता रहा है और वही हल्दी अपने एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक गुणों के लिए इस्तेमाल होती रही है।

प्रकृति आज भी औषधि की खोज और विकास को प्रेरित करती है। पूरे स्रोत का उपयोग करने के बजाय हम पौधे के कुछ हिस्से का इस्तेमाल प्राकृतिक तौर पर दवा बनाने के लिए करते हैं। जैसे कि तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल सर्दी खांसी की दवा बनाने के लिए किया जाता है। तो अदरक में अदरक की जड़ों का इस्तेमाल औषधि बनाने के लिए किया जाता है।

इस तरह से देखा जाए तो प्राकृतिक से प्राप्त होने वाली दवाइयां हमें विभिन्न पौधों के अलग-अलग हिस्सों से प्राप्त होती है। और इसी तरह से हम प्राकृतिक तौर पर दवा बनाते हैं।

दवा उत्पाद कैसे बनाया जाता है?

किसी भी दवाई को बनाने के लिए बहुत लंबी प्रक्रिया होती है। चलिए हम इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं इसके लिए हम एक साधारण से दवाई जिसके बारे में शायद आपको जानकारी होगी पेनिसिलिन ही ले लेते हैं? पेनिसिलिन को कैसे बनाया जाता है? इसकी पूरी प्रक्रिया हम नीचे जानते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

पेनिसिलिन कैसे बनाया जाता है?

पेनिसिलिन वास्तव में एक कवक से प्राप्त एंटीबायोटिक होती है जो पेनिसिलिन को अपने डीएनए में को कोडित करने की क्षमता रखता है। DNA को काट कर के एक सामान्य रूप से उपलब्ध और कम रखरखाव वाले जीवाणु के डीएनए में डाला जाता है जिससे कि E.coli कहते हैं जो कि हमारे मल में पाए जाते हैं।

बैक्टीरिया को तब संवर्धित किया जाता है, जिसका मतलब होता है एक प्रतिक्रिया टैंक के अंदर थोक में उगाए गए बैक्टीरिया। एक बार जब वे पेनिसिलिन का उत्पादन शुरू कर देते हैं तो इसे अलग करके निकाल लिया जाता है और फिर फिल्टर किया जाता है ताकि शुद्ध पेनिसिलिन प्राप्त हो सके। बाद में इसे गोलियों या कैप्सूल के रूप में बाजार में उपलब्ध कराया जाता है।

ठीक इसी तरह से प्रयोगशाला में निर्मित कृत्रिम इंसुलिन एक ऐसी दवा है जिसका इस्तेमाल मधुमेह रोगियों में रक्त शुगर लेवल को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला हार्मोन होता है।

ठीक इसी तरह पौधे से कुनैन सिनकोना ऑफिसिनैलिस पौधे से प्राप्त दवा का एक उदाहरण है जिसका इस्तेमाल मलेरिया जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। आपको भी कभी ना कभी मलेरिया बीमारी हुई होगी मलेरिया बीमारी के लिए आपने हाइड्रोक्सी क्लोरी क्वीन नाम की टेबलेट के बारे में तो जरूर सुना होगा।

इस पौधे की छाल को पीसकर चूर्ण बनाने से पहले पूरी तरह से सूखा लिया जाता है कुनैन को फिर सूखी छाल के पाउडर से निकाला जाता है और शुद्ध किया जाता है इस तरह से इस टैबलेट को बनाया जाता है।

दवाइयां बनाने की प्रक्रिया

दवाइयां बनाने की प्रक्रिया उतनी भी आसान नहीं है जितना कि हम समझते हैं। इन दवाइयों को बनाने में लंबे समय का शोध एवं कई सारी प्रतिक्रियाओं से गुजरने के बाद हमें दवाइयों का आखिरी उत्पाद प्राप्त होता है।

वर्तमान समय में हम अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके दवाइयां बना रहे हैं इसमें हम कंप्यूटर के सहायता भी ले रहे हैं। कंप्यूटर की मदद से हम दवाइयों के नई मॉडल बनाने में मदद मिल रही है जिनमें संरचनाएं होती है जो दवा को अपने लक्ष्य से बांधना आसान बनाती है। कंप्यूटर में इसके लिए जिस प्रोग्राम का इस्तेमाल किया जाता है उसे कंप्यूटर ऐडेड ड्रग डिजाइन (CADD) कहते हैं।

शोध नए और बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए हम रासायनिक तरीके एवं प्राकृतिक तौर पर प्राप्त औषधियों का इस्तेमाल करते हुए दवाइयां बनाने में मदद लेते हैं। लेकिन इतनी लंबी शोध कार्य एवं कई सारी प्रतिक्रिया करने के बाद भी जो अंतिम उत्पाद हमें दवाई के रूप में मिलता है इसकी सफलता की संभावना भी हमेशा नहीं रहती है। यही वजह है कि कुछ दवाइयों की कीमत काफी ज्यादा होती है। वर्तमान समय में दवाओं के विकास में 90% तक विफलता दर पूरे विश्व भर में दर्ज किया गया है। यानी कि हम जो दवाएं बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों और मेडिकल साइंस के क्षेत्रों में बनाते हैं उसमें से केवल 10% दवाइयां ही कारगर साबित होती है। हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले भविष्य में हम और बेहतर दवाइयां बना पाएंगे और अपनी विफलता के दर को और नीचे तक ला पाने में सक्षम हो पाएंगे।

 

 

 

 

 

 

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