बादल देख डरी हो, स्याम, मैं बादल देख डरी
श्याम मैं बादल देख डरी
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर कीजो प्रीत खरी
श्याम मैं बादल देख डरी
-मीराबाई
मीराबाई एक मध्यकालीन हिंदू अध्यात्मिक की कवित्री हैं और साथ ही मीराबाई भगवान कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त भी है, विभक्ति के आंदोलन में सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक हैं उनके द्वारा किए गए भजन श्री कृष्ण को समर्पित रहते हैं ,और इसी कारण से पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय हैं मीराबाई का जन्म राजस्थान के एक बहुत बड़े राजघराने में हुआ था |मीराबाई का जीवन बहुत ज्यादा प्रचलित है मीराबाई के बहादुरी की कहानी भी पूरे राजस्थान में कहीं जाती है कई लोगों के माध्यम से यह पता चला है कि मेरा भाई सामाजिक और परिवारिक दस्तूर ओं का बहादुरी से मुकाबला किया करती थी और श्रीकृष्ण को अपना पति मान कर उनकी भक्ति में हमेशा लिए रहती थी|
जब उनका विवाह हुआ तो उनके ससुराल पक्ष के परिवार ने उन्हें अपने राजघराने में श्री कृष्ण की भक्ति करने से इंकार कर दिया और श्रीकृष्ण की भक्ति करने के कारण मीराबाई के ऊपर कई सारे अत्याचार भी किए जाने लगे लेकिन फिर भी मीराबाई पीछे नहीं आती है और अपनी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण का गुणगान करती रही और कई सारी कविताओं की रचना की कई सारे विद्वान यह भी मानते हैं कि उनकी रचनाएं सीधे भगवान से मिलने यानी श्री कृष्ण से मिलने के लिए बनी हुई है 18 वीं शताब्दी में उन्होंने ऐसी कई सारी रचनाएं की जिनका रूपांतरण भजन के रूप में भी किया गया है और यह कविताएं उत्तर भारत में बहुत ज्यादा लोकप्रिय प्रचलित हैं मीराबाई का प्रारंभिक जीवन बताना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है क्योंकि इनका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है|
विद्वानों और साहित्यकारों के अनुसार मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता 1498 में एक राज परिवार में हुआ था| उनके पिताजी का नाम रतन सिंह राठौर था जो एक छोटे से राजपूताना रियासत के शासक थे मीराबाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी जब वह छोटी सी थी तभी उनकी माता का निधन हो गया था लेकिन मीराबाई संगीत धर्म राजनीति और प्रशासन जैसे विषयों के ऊपर बहुत ज्यादा ध्यान देती थी और उन्हीं के विषय में शिक्षा भी लेती थी| मीराबाई का लालन-पालन उनके दादा की देखरेख में हुआ उनके दादा भगवान विष्णु के बहुत बड़े उपासक थे और एक योद्धा के साथ-साथ भक्ति हृदय वाले भी थे उनके यहां साधु संतों का आना जाना अक्सर लगा ही रहता था इसी कारण से मीराबाई का बचपन साधु संतो के बीच बीता मीराबाई का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के 1516 में हुआ उनके पिता राजभर दिल्ली के सल्तनत किस शासकों के साथ संघर्ष में 1518 में घायल हुए और जिसके कारण उनकी मृत्यु 1521 में हो गई उनके पति की मृत्यु के कुछ वर्षों के बाद मुगलों के साथ युद्ध में उनके पिताजी का भी स्वर्गवास हो गया ऐसा कहा जाता है|
उनके पति की मृत्यु के बाद उन्हें साती करने का भी प्रयास किया गया लेकिन वह तैयार नहीं हुई और धीरे-धीरे संसार से दूर हो गए और एक अपना नया जीवन व्यतीत करने लगी पति की मृत्यु के बाद उनका मन अधिक से अधिक भक्ति में लगने लगा और वह मंदिर में श्री कृष्ण भक्तों के साथ अपना समय मूर्ति बनाने और नाचने और और कीर्तन करने में लगने लगा कुछ लोगों को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी इस कारण से उन्हें विश देकर मारने की कोशिश भी की गई उसके बाद भी मीराबाई अपने भक्ति में लगी रही और और उन्होंने श्रीकृष्ण की कविताएं भजनों की रचना करना जारी रखा और भगवान का नाम जपते जपते वह श्री कृष्ण कोई अपना पति मानने लगी ऐसा माना जाता है कि वह श्रीकृष्ण की भक्ति करते करते वृंदावन में रहने लगी और उसके बाद वाह द्वारिका चली गई जहां सन 1560 में उनकी मृत्यु हो गई ऐसा माना जाता है कि वह भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गई|
Meera Bai short Biography
Bio/Wiki
- Name: Meera Bai
- Date Of Birth: 1948 (Date- Information not available)
- Birthplace: Medta, Rajasthan
- Hometown: Medta, Rajasthan
- Nationality: Indian
- Eduction: None
- Profession: Poet
- Death: 1560 (date not available)
Physical Status
- Height: N/A
- Eye Color: N/A
- Hair Color:N/A
Family Information
- Father: Ratan Singh Rathod
- Mother: (Information not available)
- Brother: None
- Relationships: Married
- Husband: Bhojraj