भारतवर्ष आरंभ से ही कवियों, ऋषियों, महात्माओं का देश रहा है। हर युग में एक से बढ़कर एक प्रतिभाशाली कवियों ने भारत की भूमि को धन्य किया है। सूर, तुलसी, कबीर, मीरा, वाल्मीकि, कालिदास, प्रसाद, पंत निराला, अजेय गुप्त आदि अनगिनत कवि इस पातन धरती पर अवतरित हुए हैं। हिंदी साहित्य जगत के अनेक कवियों ने मुझे प्रभावित किया है। परंतु यदि मुझसे यह प्रश्न किया जाए क्ति मेरा सर्वाधिक प्रिय कवि कौन है तो मेरा स्पष्ट उत्तर होगा- हरिवंशराय तच्चन।
कवि हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। इनती प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई थी। 1938 में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया था तथा 1942 तक इसी विश्वविद्यालय में अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में कार्य किया और उसके बाद 1954 में इंग्लैंड की केंब्रिज यूनिवर्सिटी से पी, एन डी की जाधि प्राप्त की। 1955 से 1965 तक इन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर कार्य किया। 1966 में इनको राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 1969 में इन्हें दो चटाने नामक काव्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया तथा 1975 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की। इन्हें एक एशियाई राइटर्स काँग्रेस का लोटस पुरस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन का साहित्य वाचस्पति सम्मान एवं सरस्वती सम्मान से भी विभूषित किया गया। कविवर बच्चन की लोकप्रियता का प्रधान कारण इनके गीत हैं, जिनमें जीवन की आशा और विश्वास के आदर्श विदयमान है। इनकी कविताओं में मानवीय संवेदनाओं की सहज अभिव्यक्ति हुई है। गीतकाव्य के क्षेत्र में इन्होंने अनेक प्रयोग किए हैं। इन्होंने अपने गीतों के माध्यम से संसार का अज्ञानरूपी अंधकार मिटाने की आकाक्षा व्यक्त की है
“जन विभामय तो न काली रात मेरी,
मैं विभामय तो नहीं जगती अँधेरी।
यह रहे विश्वास मेरा, यह रहे प्रण, गीत मेरे,
देहरी के दीप सा बन ।।”
बच्चन जी की अनूठी रचना ‘मधुशाला’ ने जिस प्रकार इन्हें लोकप्रिय बना दिया. वैसे उदाहरण इतिहास में विरल ही हैं। बच्चन जी मूलतः मस्ती के कति माने जाते हैं लेकिन इस रचना में इनके दार्शनिक रुप के भी दर्शन होते हैं। वास्तव में यह एक प्रतीकात्मक रचना है। अपने ग्रंथ के आरंभ में ही बच्चनजी ने इसकी प्रतीकात्मकता की ओर संकेत कर दिया था। हरिवंशराय बच्चन जी की लिखने की शैली एकदम सरल सुगम और पाठकों को दिल को छू जाने वाली थी, जो कि हरिवंशराय बच्चन अन्य कवियों से अलग बनाती थी।हरिवंशराय बच्चन अपनी लेखन शैली से हिन्दी साहित्य में एक नई धारा का संचार किया था। उनकी अद्भुत लेखन शैली की वजह से ही उन्हें नई सदी का रचयिता भी कहा जाता था। हरिवंशराय बच्चन अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय साहित्य में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया था।
लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती,
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती!
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरते जाता है,
चढ़ कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है,
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती!
हरिवंश राइ बच्चन जी की सबसे प्रशिद्ध कबिताओ में से है जिसके लिए उनको कई सारे पुरूस्कार भी मिले थे|इनके बाद हरिवंश राइ बच्चन जी ने कई सारी रचनाए की जिनमे से लगभग सभी प्रसिद्ध है -इनके बाद हरिवंश राइ बच्चन जी ने कई सारी रचनाए की जिनमे से लगभग सभी प्रसिद्ध है
कविता संग्रह : तेरा हार (1929) मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), आत्म परिचय (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काव्य (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967) कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969), जाल समेटा (1973)|
अन्य रचनायें :
बचपन के साथ क्षण भर (1934), खय्याम की मधुशाला (1938), सोपान (1953), मैकबेथ (1957), जनगीता (1958), ओथेलो (1959), उमर खय्याम की रुबाइयाँ (1959), कवियों के सौम्य संतः पंत (1960), आज के लोकप्रिय हिन्दी कविः सुमित्रानंदन पंत (1960), आधुनिक कवि (1961), नेहरूः राजनैतिक जीवनचित्र (1961), नये पुराने झरोखे (1962), अभिनव सोपान (1964) चौसठ रूसी कविताएँ (1964) नागर गीत (1966), बचपन के लोकप्रिय गीत (1967) डब्लू बी यीट्स एंड औकल्टिज़्म (1968) मरकट द्वीप का स्वर (1968), हैमलेट (1969), भाषा अपनी भाव पराये (1970), पंत के सौ पत्र (1970), प्रवास की डायरी (1971), किंग लियर (1972), टूटी छूटी कड़ियाँ (1973)|
18 जनवरी, साल 2003 में हिन्दी साहित्य के इस महान कवि हरिवंशराय बच्चन जी ने अपनी आखिरी सांस ली और वे पूरी दुनिया को अलविदा कहकर चले गए। आज भले ही वे हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन अपनी महान कृतियों और रचनाओं के माध्यम से वे हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे। वहीं हिन्दी साहित्य में दिए गए उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उनके प्रति आज भी हर भारतीय के दिल में सम्मान है।
Harivanshrai Bachchan short Biography
Bio/Wiki
- Name: Harivanshrai bachchan
- Date Of Birth: 27 November 1907
- Birthplace: Allahabad, Uttar Pradesh
- Hometown: Pratapgrah, Uttar Pradesh
- Nationality: Indian
- Eduction: M.A (English)
- Profession: Poet
- Death: 18 January 2003 (95 years)
Physical Status
- Height: 5.8 feet
- Eye Color: Black
- Hair Color: White
Family Information
- Father: Pratap Narayan Shrivastav
- Mother: Saraswati Devi
- Brother: (Information not available)
- Relationships: Married
- First Wife: Shyama (1926-1936)
- Second Wife: Teji Bachchan (1941-2003)