तुलसीदास जी के जन्म और प्रारंभिक जीवन की जानकारी स्पष्ट नहीं है कुछ लोगों का मानना है| कि उनका जन्म 1589 को हुआ था इनके माता जी का नाम हुलसी देवी और पिताजी का नाम आत्माराम दुबे था| तुलसीदास जी एक पंडित परिवार में अर्थात ब्राह्मण परिवार में जन्म दिए थे उनका जन्म राजापुर चित्रकूट में हुआ था इनके जन्म को लेकर कई सारे मतभेद हैं ऐसा कहा जाता है कि इनका जन्म 12 महीनों घर में रहने के बाद हुआ था तो कुछ लोगों का कहना है कि जब उनका जन्म हुआ तब इनके 32 थे जिसके कारण इनका नाम रामबोला रख दिया गया तुलसीदास का शुभ समय में जन्म लिए थे कहा जाता है|
जिसके कारण उनके माता-पिता पर बहुत बड़ा संकट आ गया था कुछ ही दिन बाद उनकी माता जी का देहांत हो गया था| और कुछ समय बाद पिताजी भी खत्म हो गए थे और यह छोटा सा बालक पूरी तरीके से अनाथ हो गया था इनका बहुत ही कठिनाई से बीता 5 साल की उम्र में यह पूरी तरह अनाथ हो चुके थे और इन्हें नरहरी दास ने अपने आश्रम में स्थान दिया और वही इन्हें शिक्षा-दीक्षा दिया करते थे तुलसीदास वाराणसी में अपना ज्ञान को आगे बढ़ाया |और छह वेदों की शिक्षा प्राप्त की तुलसीदास जी बचपन से ही बहुत ही तीव्र और कुशल हुआ करते थे तुलसीदास जी ने जो भी शिक्षा ली उच्च शिक्षा को दोहे के रूप में लोगों के सामने व्यक्त किया करते थे और उन्हें उपदेश दिया करते थे तुलसीदास अपनी कथा सुनाने के लिए अलग-अलग स्थान में जाया करते थे एक बार की बात है कि वह अपनी कथा सुनाने में लीन थे तभी उनकी नजर एक अति सुंदर कन्या पर पड़ी जिनका नाम रत्नावली था कुछ समय पश्चात उनका विवाह रत्नावली जी के साथ हो गया ऐसा कहा जाता है कि मैं अपनी पत्नी के प्रेम में इतना बन चुके थे कि उनके बिना| एक पल भी नहीं रह सकते थे एक बार की बात है कि उनकी पत्नी मायके चली गई और वे उनके वापस आने का इंतजार कर रहे थे|
इंतजार नहीं हो पाया तब वे रात के खाने अंधेरे में उनसे मिलने के लिए उनके घर चले गए जहां उनकी पत्नी ने उन्हें देखकर क्रोधित मोटी और एक श्लोक कह दिया जिसे सुनकर तुलसीदास जी के जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और उनका जीवन ही बदल गया तुलसीदास जी घर परिवार छोड़कर भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए और भगवान के भजनों का कीर्तन किया करते थे वह अपनी पत्नी के शब्द सुनने के बाद पूरे भारत के दर्शन के लिए तीर्थ यात्रा में चले गए जहां पर उन्होंने बद्रीनाथ द्वारिका पूरी रामेश्वरम और हिमालय का भ्रमण किया और आखिर में दे कहां से आ गए काशी में गंगा के किनारे उन्होंने रामचरितमानस महाकाव्य लिखा और ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने इस कार्य को लिखने के लिए हनुमान जी की सहायता ली| उसके बाद तुलसीदास जी ने हनुमान जी का संकट मोचन मंदिर की स्थापना की जो आज भी वाराणसी में गंगा के किनारे स्थित है तुलसीदास जी को रामचरित महाकाव्य लिखने में पूरे 2 साल 7 महीने और 26 दिन का समय लगा था और भगवान राम की अटूट भक्ति और हनुमान जी के आशीर्वाद से तुलसीदास जी को चित्रकूट में अस्सी घाट में श्री राम जी के दर्शन हुए इसके बाद उन्होंने गीतावली की रचना की|
तुलसीदास जी काफी सालों के हो गए थे और वे अब धीरे-धीरे बीमार और कमजोर पड़ने लगी संवत् 1623 म उन्होंने अपना देह त्याग कर दिया तुलसीदास जी ने अपने अंतिम समय में विनय पत्रिका लिखी थी जिसने खुद प्रभु श्री राम जी ने हस्ताक्षर किए थे मुझे श्री राम का नाम लेते हुए अबे भगवान श्री राम की भक्ति में हमेशा के लिए दिन हो गए|
तुलसीदास जी की रचनाएं -रामचरितमानस रामलला नहछू, बरवाई रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल और रामाज्ञा प्रश्न।
ब्रज कार्य – कृष्णा गीतावली , गीतावली, साहित्य रत्न, दोहावली , वैराग्य संदीपनी और विनय पत्रिका।
इन 12 रचनाओं के अलावा Tulsidas – तुलसीदास द्वारा रचित 4 और रचनाएं काफी मशहूर हैं जिनमे मुख्य रूप से हनुमान चालीसा , हनुमान अष्टक , हनुमान बहुक और तुलसी सतसाई शामिल है।
Goswami Tulsidas short Biography
Bio/Wiki
- Name: Tulsidas
- Date Of Birth: 1589
- Birthplace: Rajapur, Chitrakoot
- Nationality: Indian
- Profession: Author
Family Information
- Father: Aatmaram Dubey
- Mother: Hulsi Devi