मैंने मन की जिंदगी का तोहरा सफल है लेकिन इसे गूजर जाना ही असली पहचन है भले ही तैयार हैं तो सब चलते हैं जो रास्ते बने वही तो इंसान है दोस्तों आज मैं ऐसे बेकार की बात करने जा रहा हूं जो पूरी तरह से है और जूनूनियत की मिसाल है जिसे केवल एक छोटा और छनी लेकर अपने अकेले के बांध पर 360 फुट लंबी 30 फुट चौदई और 25 फुट ऊंचा पहाड़ को काट कर एक ऐसी सड़क बना दे जिस दिन भर में जाने क्या जाने वाले हैं जाने लगा जी दोस्तों में बात कर रहा हूं दशरथ मांझी की जिन्होने अपनी प्रेमिका अपनी मोहब्बत फागुनी की याद में यह अदभुत काम कर दिखें तो दोस्त मैं बिना पहाड़ के समय खराब की है इसमें मैं सबसे शुरू में हूं मिंट है जाने वाले दशरथ मांझी का जन्म करीब 1934 में हुआ था दशरथ बिहार दरजी के गया जिले की एक बहुत ही पिचले गांव में रहते हैं यह पिचले गांव का अंदाज अब आईएसआई बात से लगा उनके गांव में है आं थी नहीं स्कूल और पानी के लिए भी लोगन को 3 किलोमीटर तक पेडाल चलना पड़ता था ऐसे में छोटी से छोटी जरूर हो तो के लिए वहां के लोगन को गांव और कस्बे की बिच का एक पुरा पहाड़ पर करना पड़ा था या फिर पहाड़ किनारे से चक्कर लगभाग 70 किलोमीटर का चक्कर लगा हुआ उसका अभी तक पांच न होता था गरीब की वजह से दशरथ छोटी उम्र में ही घर से भाग कर धनबाद की कोयले की खान में काम करने फिर से सैलून तक खराब फिर से घर लौट आया और फागुनी नाम की एक लड़की से शादी कर ली दशरथ का परिवार गरीब तो था बहुत बहुत खुश था और फागुनी जिसे दशरथ प्यार से फागुनिया बुलेट द वाह तो उनकी जान थी बिलकुल वैसा ही जैसा शाहजहां को भी। नजर लग गई क्योंकि वक्त को शायद कुछ और ही मंजुर था लकड़ी कट रहे अपने पति दशरथ के लिए खाना ले जाते समय फागुनी का जोड़ी किस ला और वह पहाड़ से गिर गया जिससे वह बहुत ही उसमें जो गया हो गया था रत्यु हो गई दोस्ती अगर फागुन को तुरंत अस्पाताल ले जया गया होता तो शायद हो जाती लेकिन गहलोत और गांव से तूरंत शहर के हॉस्पिटल ले जाना संभव नहीं था क्योंकि जैसा मैंने पहले ही बताया कि उनके गांव और विहार शहर में की घुमवदार रस्ते शहर की दूर बहुत ही ज्यादा अभी यह घाटा जसवंत मांझी के दिल पर चोट कर गई आखिरी उनकी मोहब्बत ने उनका शत छोड़ दिया था जिस तरह से सबसे ज्यादा मुश्किल में इस्तेमाल किया गया था 10 की काफी खराब में इस्तेमाल किया विशाल पहाड़ को काट कर दी बिच रास्ता निकलेंगे जिनसे किसी और की मोहब्बत उसका साथ न छोडे और प्राथमिकी उसके खराब से वह शुद्ध 22 साल लगे रहे ना दिन देखा ना रात न धूप देखी न चाहव ना सर्दी न बरसात बस लगे रहे वहन कोई पीठ न होने वाला है उल्टा गांव वाले उनका रहा फिरते परिवार के लोगों ने भी साथ छोड़ दिया था लेकिन कहते हैं न संघर्ष में आदमी अकेला होता है सफल में दुनिया उसके साथ ऐसा होता है जिस पर वह है जिस पर वह है हुआ दशरथ ने अपने अकेले के बांध पर केवल एक छोटा और चीनी की मदद से 360 फुट लंबी 30 फुट चौधई और 25 फुट ऊंचे पहाड़ का सिना चीर दिया और बदला ले लिया इस्तेमाल पहाड़ से जिस्में उसकी प्रेमिका उसकी फगुनिया को अब छिना था में दूर जो पहले साथ होती थी अब सिरफ 10 किमी ले गई है बच्चन का स्कूल जो 10 किलोमीटर दूर था अब किलोमीटर दूर था 3 किलोमीटर गया है पहले अस्पाताल में लग जाता था अस्पाताल में अब लोग से आधे घंटे में इस्तेमाल करते हैं हमें ई गांव के अलावा और गांव इस्तमाल करते हैं दोस्तो शुरू किया था तो लोग पागल करते हैं और मजा बुले द की अकेला तू क्या कर लेगा लेकिन एक बात जान लिजिये की जीवन में सबसे बड़ी खुशी उसी को करने में है जो है आप नहीं कर सकते हैं और साथ ही साथ सफल होने के लिए संयम बहुत जरुरी है क्योंकि जिंदगी के एक दो साल नहीं शुद्ध 22 साल का कथोर मेहंदी करने के खराब दशरथ ने पहाड़ के गुरुर को तोड़ा था मांझी का अपना कहना है और खुद को जो कुछ आता है उसी के बांध पर मैं मेहंदी करता रहा मेरा यही मंत्र था की अपनी धुन में लगे रहो अपना काम करते रहो चिजेन मिले ना मिले इश्क की परवाह मत करो जो हर रात के बुरे दिन तो ऐसे हैं इस उत्थान के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में पदमश्री के लिए उनके नाम का प्रकाशन रखा और साथ ही साथ दशरथ मांझी के नाम पर पक्की सड़क और अस्पताल के निर्माण का वादा किया मार्च 2014 में आमिर खान द्वारा चलाए गए आमिर खान द्वारा चलाए गए जयते का समुद्र बेटा 2 का पहला एपिसोड 10 वाट मांझी को समरपित किया गया अमीर खान मांझी जी के बेटी भागीरथ मामाजी और बहू बसंती देवी से मुलकत की और उनकी गरीब को देखते हैं उन विटिया सहायता प्रदान करने का वड़ा किया लेकिन 1 अप्रैल 2014 को पैसे न होने की वजह से बसंती देवी की मृत्यु को देखते हैं। पत्नी ने यह कहा की अगर आमिर खान ने मदद का वड़ा पुरा किया होता तो शायद बसंती की जान बन जाती दशरथ मांझी ने अपने अंत समय में अपना जीवन प्रति फिल्म केले का विशेष अधिकार दे दिया तकी वह पूरी दुनिया के लोगों के लिए को क्या सफल पाने के लिए जरुरी है की हम अपने प्रयास में निरंतर छूत रहे बहुत से लोग कभी है बात को नहीं जानते की जब उन अपने प्रयास छोडे हैं तो वह सफल की कितने करीब द आखिरीकर 17 अगस्त 2007 से कैंसर हुए दिल्ली के लिए एम्स अस्पताल में दशरथ मांझी की मृत्यु हो गई उनका अंतिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ किया गया दोस्तों भले ही दशरथ मांझी आज हमारे बिच ना हो और उनका यह अदभुत कार्य आने को प्रेरणा देता है रहेगा आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद